नारी को मैं शीश झुकाता, नारी से जग सजता है।
🥀लावड़ी छंद🥀
विषय-नारी
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नारी को मैं शीश झुकाता,
नारी से जग सजता है।
नारी की जग शान सजाना,
नारी से सब उगता है।।
नारी कोमल कुमुद कली है,
रूप गजब का लगता है।
नारी है ममता की अगरी,
ईश्वर गोदी पलता है।।
नारी—
नारी आई बेटी बनकर,
आँगन सुंदर महका है।
वहना बनकर राखी बांधे,
लख लख तन मन चहका है।।
डोली बैठ पिया घर जाए,
भारी दुख दिल सहता है।
दौनों कुल पवित्र है करती,
सुख घर हर पल रहता है।।
नारी —
सारे घर का काम करे माँ,
धीरज दिल में गहरा है।
लगे नौकरानी सी माता,
काम हेतु तन लहरा है।।
नारी भारत वीर शेरनी,
रानी झाँसी लखना है।
मत बिसराना झलकारी को ,
मान हमेशा रखना है।।
नारी–
लेकिन लाली नहीं सुखी है,
पापाचारी भारी है।
बाहर की क्या बात करें हम,
आफत अंदर जारी है।।
औषत घटे देख नारी को,
सपना बनती नारी है।
कइयक फिरते अन व्याहे नर
खाली देखो पारी है।।
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🥀प्रभुपग धूल🥀
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश