गुब्बारे बेचने के लिए मौज से चला

🥀ग़ज़ल🥀
बह्र-
(221 2121 1221 212)
काफ़िया- आ स्वर
रदीफ़-चला
विषय-गुब्बारा वाला
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गुब्बारे बेचने के लिए मौज से चला।
मन प्यारे बालकों के सँग खेलने चला।।
नीले गुलावी लाल हरे रंग से सजा।
सब लो खरीद आज गली कूच में चला।।

अब लो खरीद प्रेम से कल ना मिलें सुनो।
कमला शहीद राम लली देख में चला।।
रजनी वहीद श्याम कली रूठ ना यहॉं।
गुब्बारे हाथ लेकर मैं शौक से चला।।

चुन के खरीद लो सब बच्चो नहीं लड़ों।
दो दो खरीद लो चुन घरको अभी चला।।
दो दो रुपे मुझे दो पाओ तभी इसे।
खेलो सभी सदा मिल मै तो सुनो चला।।

गुब्बारे की तरह देखो प्राणी यहां सजा।
जिनकी हवा निकल गई विलकुल नहीं चला।।
चलना जरा सँभल के बड़ी आड़ टेढ़ है।
सोचो दिलों में आज बड़ी बात कह चला।।
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🥀प्रभुपग धूल🥀
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश

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