अतिक्रमण की चपेट में प्राचीन कुएं, उपला पाथने का बना साधन
अतिक्रमण की चपेट में प्राचीन कुएं, उपला पाथने का बना साधन
रिपोर्ट-समीर पठान
महोबा। जिले के अधिकतर प्राचीन कुएं अब अतिक्रमण की चपेट में आ गए हैं। कभी गांव की जल आपूर्ति का मुख्य स्रोत रहे ये कुएं अब उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं और ग्रामीणों द्वारा उपले पाथने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हैं।
कभी इन कुओं पर सुबह से शाम तक पनिहारियों की चहल-पहल रहती थी, उनके गीतों की मधुर गूंज गांव में गूंजा करती थी। लेकिन बदलते समय और नई तकनीकों के कारण कुओं का महत्व कम होता गया। हैंडपंप और नलजल योजनाओं ने इनका स्थान ले लिया, जिससे ये कुएं धीरे-धीरे बेकार हो गए।
अब हालात यह हैं कि कई गांवों में इन कुओं पर कब्जा कर लिया गया है, तो कहीं ग्रामीणों ने इन्हें उपले पाथने का साधन बना दिया है। प्रशासन की अनदेखी के कारण ये ऐतिहासिक धरोहरें बर्बादी की कगार पर पहुंच गई हैं।
संरक्षण की आवश्यकता
पर्यावरणविदों और समाजसेवियों का कहना है कि इन कुओं का संरक्षण जरूरी है, क्योंकि ये न सिर्फ ऐतिहासिक धरोहर हैं, बल्कि भू-जल स्तर बनाए रखने में भी सहायक हो सकते हैं। यदि प्रशासन और स्थानीय लोग इनकी सफाई और पुनरुद्धार पर ध्यान दें, तो ये कुएं फिर से जल स्रोत के रूप में उपयोगी साबित हो सकते हैं।
जनप्रतिनिधियों और प्रशासन को जागरूकता दिखाने की जरूरत
गांव के बुजुर्गों का कहना है कि प्रशासन को इस ओर ध्यान देना चाहिए और इन कुओं को संरक्षित करने के लिए विशेष अभियान चलाना चाहिए। ग्रामीणों को भी जागरूक किया जाना चाहिए कि वे इन कुओं की उपेक्षा न करें, बल्कि इनके पुनर्जीवन के लिए प्रयास करें।
अगर जल्द ही उचित कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले समय में ये प्राचीन कुएं केवल अतीत की स्मृतियों में ही रह जाएंगे।