मिलत तमंचा अपराधिन खां, बड़ी सुगमता पाई है।

💥ताटंक छंद💥
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मिलत तमंचा अपराधिन खां,
बड़ी सुगमता पाई है।
चोरी लूट डकैतीं होतीं,
स्वर्ण सुहागा भाई है।।
लेकिन अफसर नहीं विचारें,
तमँचों की काँ खाई है।
वेरुजगारी फैली भारी,
धँधे अबैध सुहाई है।।
मिलत तमंचा–
नहिं उत्तर प्रदेश में उत्तर,
अत्याचारी छाई है।
अबैध तमँचे सोहें ऐसे,
जैसे फैली राई है।।
रोज पकड़ते अपराधी हैं,
तमंचे सँग लखाई है।
समझ नहीं आवै अब हमको,
कित सें जा भरपाई है।।
मिलत तमंचा–
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🥀प्रभु पग धूल🥀
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश

अबैध तमँचे मिल रहे,आसानी से आज। उदर आग ऐसी बड़ी,करते अटपट काज।।

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