37 साल बाद भी नहीं सुलझा सुगिरा का जुगल किशोर चोरी कांड: प्रशासन और पुलिस की लापरवाही पर उठे सवाल
37 साल बाद भी नहीं सुलझा सुगिरा का जुगल किशोर चोरी कांड: प्रशासन और पुलिस की लापरवाही पर उठे सवाल
महोबा, कुलपहाड़: सुगिरा गाँव में 1987 में हुए जुगल किशोर मंदिर चोरी कांड ने उस समय पूरे इलाके को झकझोर दिया था। मंदिर से महत्वपूर्ण धार्मिक वस्तुओं की चोरी हुई थी, लेकिन 37 साल बाद भी यह मामला अनसुलझा है। पीड़ित परिवार ने बार-बार पुलिस और प्रशासन से न्याय की गुहार लगाई, यहां तक कि मुख्यमंत्री पोर्टल पर भी शिकायत दर्ज की, लेकिन आज तक दोषियों का पता नहीं चला।
क्या था मामला?
1987 में सुगिरा गाँव के प्रसिद्ध जुगल किशोर मंदिर में चोरी की घटना हुई। पीड़ित ने तत्काल कुलपहाड़ थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। घटना के बाद इलाके में तनाव का माहौल था। चोरी में मंदिर की मूल्यवान मूर्तियों और अन्य धार्मिक वस्तुओं को निशाना बनाया गया था।
पुलिस और प्रशासन की नाकामी:
37 साल बीतने के बावजूद न तो पुलिस इस मामले में किसी आरोपी को गिरफ्तार कर पाई और न ही चुराई गई वस्तुएं बरामद हो सकीं। पुलिस द्वारा शुरुआती जांच में लापरवाही बरती गई, जिससे अपराधियों को खुला मौका मिला।
आश्चर्यजनक बात यह है कि इतने लंबे समय के बाद भी पुलिस और प्रशासन ने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया। मुख्यमंत्री पोर्टल पर शिकायत के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। इससे प्रशासन और पुलिस की निष्क्रियता का पर्दाफाश होता है।
गाँव के सम्मानित लोग और जनप्रतिनिधि मौन क्यों?
सुगिरा गाँव के सम्मानित व्यक्तियों और जनप्रतिनिधियों का इस मामले पर चुप रहना और कोई दबाव न बनाना भी चिंताजनक है। क्या यह मौन किसी राजनीतिक दबाव का परिणाम है, या प्रशासन की विफलता पर पर्दा डालने का प्रयास?
प्रशासन और पुलिस की कड़ी निंदा:
सुगिरा गाँव के इस ऐतिहासिक चोरी कांड का आज तक अनसुलझा रहना प्रशासन और पुलिस की विफलता को उजागर करता है। यह घटना न केवल सुगिरा गाँव के लिए, बल्कि पूरे जिले के लिए शर्मनाक है।
पुलिस की निष्क्रियता: घटना के समय की गई जांच में पुलिस ने किसी भी साक्ष्य को गंभीरता से नहीं लिया।
प्रशासन का लचर रवैया: बार-बार शिकायत के बावजूद प्रशासन ने मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया।
गाँव की आवाज:
सुगिरा गाँव के लोग आज भी न्याय की उम्मीद में हैं। “कानून के हाथ लंबे होने की बात कही जाती है, लेकिन हमारे मामले में कानून के हाथ इतने बौने साबित हुए कि 37 साल बाद भी हम न्याय से वंचित हैं,” पीड़ित परिवार के सदस्य ने कहा।
समाधान की मांग:
1. नए सिरे से जांच: इस मामले की जांच सीबीआई या किसी अन्य स्वतंत्र एजेंसी को सौंपी जाए।
2. पुलिस सुधार: पुलिस की कार्यप्रणाली में सुधार के लिए कठोर कदम उठाए जाएं।
3. जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही: स्थानीय नेताओं और जनप्रतिनिधियों को इस मामले में जनता के साथ खड़ा होना चाहिए।
निष्कर्ष:
सुगिरा गाँव का जुगल किशोर चोरी कांड प्रशासन और पुलिस की विफलता का जीता-जागता उदाहरण है। न्याय में देरी ने पीड़ित परिवार को हताश कर दिया है। यह समय है कि प्रशासन अपनी निष्क्रियता पर आत्ममंथन करे और पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए ठोस कदम उठाए।