कोयला और लिग्नाइट संबंधी सार्वजनिक उपक्रमों में हरित पहल
कोयला और लिग्नाइट संबंधी सार्वजनिक उपक्रमों में हरित पहल
कोयला और लिग्नाइट संबंधी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) अर्थात् कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल), एनएलसी इंडिया लिमिटेड (एनएलसीआईएल) और सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (एससीसीएल) ने वित्त वर्ष 2023-24 तक कोयला और लिग्नाइट खनन क्षेत्रों में तथा उसके आसपास लगभग 55,312 हेक्टेयर (हेक्टेयर) भूमि का जैविक रूप से पुनर्ग्रहण करते हुए वनरोपण किया है। इसका विवरण नीचे दिया गया है:
वृक्षारोपण का प्रकार | क्षेत्रफल (हेक्टेयर में) |
जैविक पुनर्ग्रहण | 37,022 |
एवेन्यू प्लांटेशन | 14,463 |
खदान के पट्टे के बाहर वृक्षारोपण | 3,827 |
कुल | 55,312 |
हरित पहलों की अनुमानित कार्बन सिंक क्षमता 2.77 मिलियन टन कार्बनडाइऔक्साइड गैस के समतुल्य है। कोयला और लिग्नाइट संबंधी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की हरित पहल भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) लक्ष्य में योगदान करती है जिसका शीर्षक है “2030 तक अतिरिक्त वन और वृक्ष आवरण के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बनडाइऔक्साइड गैस के समतुल्य का अतिरिक्त कार्बन सिंक बनाना।”
कोयला मंत्रालय ने विजन विकसित भारत के अंतर्गत कोयला/लिग्नाइट संबंधी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के लिए अगले 5 वर्षों के लिए भूमि सुधार और वनरोपण का लक्ष्य निर्धारित किया है, जो निम्नानुसार है:
वित्तीय वर्ष | भूमि पुनर्ग्रहण और वनरोपण का लक्ष्य (हेक्टेयर में) |
2024-25 | 2,600 |
2025-26 | 2,800 |
2026-27 | 3,100 |
2027-28 | 3,300 |
2028-29 | 3,550 |
कुल | 15,350 |
वृक्षारोपण की पारंपरिक विधियों के अतिरिक्त, कोयला एवं लिग्नाइट संबंधी सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा अपनाई जा रही कुछ नवीन तकनीकों में बीज बॉल वृक्षारोपण, मियावाकी प्लांटेशन, उच्च तकनीक खेती, बांसरोपण तथा ओवरबर्डन डम्पों पर वृक्षारोपण के लिए ड्रिप सिंचाई आदि शामिल हैं।
कोयला और लिग्नाइट संबंधी सार्वजनिक उपक्रमों में पुनर्ग्रहण और वन क्षेत्रों की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के उपाय वैज्ञानिक पुनर्ग्रहण, जैव विविधता संरक्षण और सामाजिक-आर्थिक एकीकरण पर केंद्रित हैं। पहलों में ऊपरी मृदा प्रबंधन, देशी प्रजातियों का रोपण, वन्यजीव आवास बनाना और रिमोट सेंसिंग द्वारा निगरानी शामिल है। कोयला/लिग्नाइट संबंधी सार्वजनिक उपक्रमों में वनीकरण गतिविधियां ज्यादातर राज्यों के वन विभागों और राज्य वन विकास निगमों द्वारा की जाती हैं। पुनर्ग्रहण वाले क्षेत्रों को इको-पार्क, कृषि वानिकी, जल क्रीड़ा, मछली पालन और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए पुनः उपयोग में लाया जाता है। गैर-वन भूमि पर वन क्षेत्रों को कोयला खनन परियोजनाओं के लिए वन मोड़ के लिए प्रतिपूरक वनीकरण (सीए) भूमि के रूप में भी पेश किया जाता है।
केंद्रीय कोयला एवं खान मंत्री श्री जी. किशन रेड्डी ने आज लोकसभा में एक लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।