मुक्तक

मुक्तक
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1-
आग लगे उन अखवारों में,
जिनमें कवि के काव्य नहीं।
आग लगे ऐसे पन्नों में,
लिखे दीन के वाक्य नहीं।।
कलम तोड़ दूँ ऐसी मित्रो,
नहीं दीन की बात लिखे।
नहीं साधना करना ऐसी,
जो करने में साध्य नहीं।।
2-
कलमकार वे पशुओं जैसे,
शुद्ध लेख का ज्ञान नहीं।
पंडित जी हैं वे धूसर से,
जिन्हें धर्म का भान नहीं।।
पशुशाला है वो न्यायालय,
नहीं दीन को न्याय मिले।
मरघट से है वो घर मित्रो,
जिधर नार का मान नहीं।।
3-
धनी लोग वे विष से भीषण,
नहीं हाथ से दान करें।
संत लोग वे रावण जैसे,
नहीं राम का गान करें।।
वह प्राणी है दुस्सासन सा,
खींच नार का चीर रहा।
वे अफसर हैं काजल जैसे,
रिश्वत से जलपान करें।
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प्रभुपग धूल

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