वृक्ष,धरा,नारी,पानी चारों का अस्तुत्य खतरे में -निरंतर घट रहा नारियों का अनुपात- खुलेआम बिक रहीं गर्भ पतन करने वाली दवाएँ-

लक्ष्मी कान्त सोनी(उपसंपादक)

वृक्ष,धरा,नारी,पानी चारों का अस्तुत्य खतरे में
-निरंतर घट रहा नारियों का अनुपात-
खुलेआम बिक रहीं गर्भ पतन करने वाली दवाएँ-
वनों के क्षेत्रफल में आ रही भारी गिरावट
ऊँचे-ऊँचे पहाड़ गहरी-गहरी झीलों में हो रहे तब्दील-
नदियों का अस्तुत्य भी है खतरे में-
रासायनिक खादों व कीट नाशक दवाओं के उपयोग से भूमि हो रही दूषित-
महोबा/वैसे तो हिंदुस्तान में नारी को पूज्यनीय होने का मान हाशिल है किंतु यह बात सिर्फ कहने को ही रह गयी है निरंतर देश में नारी हिंसा व भ्रूण हत्या जैसे मामले आए दिन उभर कर सामने आते रहते हैं जिसके चलते अब देश की नारियों का अनुपात निरंतर कम होता जा रहा है वो दिन दूर नहीं जब नारी एक सपना बन जाएगी आज कल मेडिकल स्टोरों में गर्भपात करने वाली दवाएँ खुलेआम बेची जा रहीं हैं जो कन्या भ्रूण हत्या जैसे पाप कृत्य को बढ़ावा देती हुई देखी जा रहीं हैं।
आज मिसोप्रेस्ट,मिफिगेस्ट,अनवांटेड किट जैसी दवाएँ उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों में खुलेआम बेची जा रहीं हैं जिसे गोपनीय तरीके से कोई भी खरीद सकता है।
यदि समय रहते इन गर्भपात करने वाली दवाओं की विक्री पर रोक नहीं लगाई गई तो वो दिन दूर नहीं जब नारी एक सपना बन जाएगी।
इसी क्रम में आपको बता दें की हमीरपुर,राठ,जालौन महोबा सहित उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों में गर्भपात करने वाली दवाएँ खुलेआम बेची जा रहीं हैं।
और जिम्मेदार लोग सब कुछ देखते हुए भी मौन धारण किए हुए हैं।
आपको बता दें की वृक्ष धरा नारी पानी चारों की सृष्टि संचालन के कार्य में अहम भूमिका है इनके बिना सृष्टि का संचालन होना संभव नहीं है किंतु आज नदियों से आधुनिक मशीनों की मदद से अबैध बालू खनन किया जा रहा है जिसके चलते जल स्तर में भारी गिरावट देखी जा रही है आज क्षेत्रीय नदियों का अस्तुत्य खतरे में बना हुआ है।
तो दूसरी तरह पहाड़ों में लगातार खनन कार्य किया जा रहा है जिसके चलते ऊँचे ऊँचे पहाड़ आज गहरी-गहरी झीलों में तब्दील होते जा रहे हैं ।
पहाड़ों की संख्या में गिरावट होने से भूकम्प जैसी घटनाएँ आए दिन उभर कर सामने आती रहती हैं।
अब बात करते हैं वृक्षों की तो आज उत्तर प्रदेश सरकार वृक्षारोपण पर भारी भरकम धनराशि व्यय कर रही है इसके वावजूद भी वनों का क्षेत्रफल पहले की अपेक्षा कम ही होता जा रहा है जब की पिछले समय में बिना व्यय किए ही वनों का क्षेत्र फल अधिक था।
पेड़ पौधों से हमें लकड़ी कोयला औषधियों सहित अनेकों सुविधाओं सहित स्वच्छ जलवायु प्राप्त होती है।
आज वनों की असीमित कटान से बीते दिनों की अपेक्षा अब वनों का क्षेत्रफल निरंतर गिरता ही जा रहा है।
इसी क्रम में बात कर लेते हैं धरा की तो आज के आधुनिक युग में रसायन खादों के उपयोग से भूमि दूषित हो गयी है उसकी गुणवक्ता निरंतर विषाक्तता में परिवर्तित होती जा रही है।
जिसके परिणाम स्वरूप आज लोग कुपोषण के आगोश में समाते जा रहे हैं।
थोड़े से मौसम परिवर्तन से ही लोगों का स्वास्थ्य खराब हो जाता है।
वृक्ष धरा नारी पानी का अस्तुत्य खतरे में आने से बे-मौसम वारिस व अन्य प्राकृतिक आपदाओं का पहाड़ मानव जीवन पर टूटता रहता है।
यदि समय रहते इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाया गया तो मानव जीवन पर घोर संकट आने से कोई नहीं रोक सकता।

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