ब्रह्माकुमारीज महोबा द्वारा दादी* *प्रकाशमणि जी का* *सोलहवां स्मृति दिवस विश्व बंधुत्व* *के रूप में मनाया गया
*ब्रह्माकुमारीज महोबा द्वारा दादी* *प्रकाशमणि जी का* *सोलहवां स्मृति दिवस विश्व बंधुत्व* *के रूप में मनाया गया।*
*निमित्त, निर्माण और निर्मल वाणी* *का मंत्र दिया श्रदध्या* *दादी जी ने ।*
*राजयोगिनी बीके सुधा बहिन जी* ।
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की पूर्व मुख्य प्रशासिका आदरणीय दादी प्रकाशमणि जी का सोलहवां स्मृति दिवस ब्रह्माकुमारी संस्थान के राठ रोड स्थित नूतन भवन में विश्व बंधुत्व दिवस के रूप में मनाया गया। जिसमें महोबा क्षेत्र के लगभग 500 राजयोगी भाई बहनें उपस्थित होकर दादी जी के अद्वितीय सेवाओं के लिए भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की।
इस अवसर पर संस्थान के महोबा क्षेत्र की प्रशासिका राजयोगिनी सुधा बहिन जी ने आदरणीय दादी जी ने व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि दादी जी ने सदा जागती ज्योति विश्व कल्याण की सेवाओं में तत्पर त्याग, तपस्या , प्रेम और करुणा की प्रतिमूर्ति थीं। उनका व्यक्तित्व सादा , सरल और निर्माण चित्त था। 140 देशों में फैले 8000 सेवाकेंद्रों का कुशल संचालन करते हुए उन्होंने कभी स्वयं को हैड नहीं समझा । वे कहा करती थीं कि हैड तो परमात्मा है लेकिन उसे भी हेडिग नहीं है इसलिए मुझे कभी तनाव नहीं होता। उनका मूल्य मंत्र था। निमित्त भाव होकर कर्म करो और वाणी को निर्मल और निर्विकार बनाओ।
कार्यक्रम में विशेष रूप से भोपाल से पधारे ज्ञान वीणा के संपादक वरिष्ठ राजयोगी ब्रह्माकुमार श्री प्रकाश भाई जी ने कहा कि दादी जी अपने असीम करुणा और स्नेह मयि नेत्रों से सारे विश्व का कल्याण करने वाली शांति और शक्ति की प्रतिमूर्ति थीं।वे छोटे बड़े सभी से मिलते हुए उन्हें निहाल कर देती थी । सभी को आभास होता था जैसे सचमुच उनकी ही दादी हैं। दादी जी ने सन् 1969 में ब्रह्माकुमारीज संस्थान की बागडोर संभाली। बागडोर संभालते भी आध्यात्मिक सेवाओं का विस्तार तीव्र गति से करते हुए संस्था के विकास में चार-चांद लगा दिये। उनके नेतृत्व में ब्रह्माकुमारी संस्थान को संयुक्त राष्ट्र संघ की आर्थिक एवं सामाजिक परामर्श दातरी समिति ने स्थाई सदस्यता प्राप्त हुई। मानवता विश्व शांति एकता के प्रयास के लिए उन्हें विश्व शांति दूत पुरस्कार प्रदान किया गया। साथ ही विभिन्न देशों द्वारा साथ शांति पदक उन्हें प्रदान किये गये।
दादी जी द्वारा अनेकानेक विश्व भर में अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों को संबोधित किया गया एवं विश्व धर्म संसद की अध्यक्षता भी की। उनके नेतृत्व में समाज के समग्र विकास के लिए 18 प्रभाग बनाये गये । जिसके द्वारा समाज के हर वर्ग में चेतना जगाकर सुखमय संसार बनाने में अद्वितीय योगदान दिया।
इस अवसर पर विशेष अतिथि के रूप में पधारे दयाशंकर कौशिक दिगम्बर जी ने दादी जी की भूरी भूरी प्रशंसा करते हुए कहा कि शाश्वत ज्ञान की सरस्वती और शक्ति स्वरूपा थीं। सारे संसार में आध्यात्मिक चेतना जगाकर मानव कल्याण का कार्य किया। उन्होंने बताया कि ब्रह्माकुमारी बहनें युवा कल्याण, महिला जाग्रति और व्यसन मुक्ति, स्वच्छता, ग्राम विकास, दिव्यांग जनों की सेवा आदि विविध अभियान चलाकर भारत और विश्व की सच्ची मानव सेवा कर रहीं हैं। मैं इस कार्यक्रम में आकर अभिभूत हूं और मुझे विश्वास है कि पवित्र बहनें भारत को स्वर्ग अवश्य बनायेंगी।
आपका जन्म वर्ष 1922 दीपावली के दिन तत्कालीन हैदराबाद सिंध में हुआ था।
अतः मात्र 14 वर्ष की अल्प आयु में वे सिंध में ब्रह्माकुमारी संस्थान के पितृ पुरूष प्रजापिता ब्रह्मा बाबा के सानिध्य में ज्ञान और राजयोग की साधना में लीन हो गईं और अपना सम्पूर्ण जीवन समाज के आध्यात्मिक एवं नैतिक उत्थान द्वारा विश्व नवनिर्माण की सेवा में समर्पित कर दिया।
वर्ष 1950 में पाकिस्तान में ओम मंडली के नाम से संचालित यह संगठन भारत में आबू पर्वत स्थानांतरित हो गया ।जिसका पूरा नेतृत्व माताओं और बहनों के हस्तों में था ।
दादी जी से पूर्व मातेश्वरी जगदंबा सरस्वती जी प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की मुख्य प्रशासिका रहीं।
इस प्रकार दादी जी कहतीं थीं कराने वाला शिव भगवान सब कुछ करा
रहा है ,करने वाले भगवान के बच्चे कर रहे हैं, मैं तो निमित्त मात्र
हूं।इस अविराम आध्यात्मिक सेवा
में चलती उन्होंने 25 अगस्त् वर्ष 2007 में अपना पार्थिव देह त्याग कर अयक्तरोहण किया।
दादी प्रकाशमणि जी की मानवता के लिए की गई अद्वितीय सेवाओं की स्मृति में एक डाक टिकट भी माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपति मुर्मू जी द्वारा जारी किया जाएगा।