उमड़-घुमड़ कर सावन बरसे, मंद पवन इठलाती है

ताटंक छंद
आधारित गीत
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उमड़-घुमड़ कर सावन बरसे,
मंद पवन इठलाती है।
उछल रही है प्रेमिल सरिता,
हेम लता लहराती है।।
1-
चम-चम चम-चम चपला चमके,
मेघ रागनी गाते हैं।
दमक रही मछ्ली मणियो सी,
चाँद नजर मत आते हैं।।
बिरह अगन में जलती रजनी,
नहीं चाँद को पाती है।
उछल रही है—————–
2-
बूँद स्वाति की कब बरसेगी,
आशा मनमें भारी है।
सीप भरेगी कब मोती से,
सोच निरंतर जारी है।।
बेदर्दी है चक्र समय का,
स्वर्ण घड़ी मत आती है।
उछल रही है—————–
3-
नहीं श्याम की मुरली बजती,
व्याकुल राधा रानी है।
सूख रही है प्रेमिल गंगा,
नहीं प्रेम का पानी है।।
शोक सिन्धु सागर सा लहरे,
घोर उदासी छाती है।
उछल रही है———————–
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प्रभुपग धूल

 

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