दुर्मिल सवैया

दुर्मिल सवैया
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( सगण(112) X 8
यति 12,12 वर्ण पर
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112 112 112 112,
112 112 112 112
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1-
सद्कर्म सदा करते रहना,
प्रभु पार करें भवसागर से।
मत कर्म करो कडुए जग-में,
नित प्रीति करो नटनागर से।।
शुचिता भरके सरिता जल सी,
विनती करना करुणाकर से।
पग धूलि मलो हरि के पग की,
वरदान मिले कमलाकर से।।
2
नित ध्यान लगाकर ईश्वर का,
शुभ-धर्म भरो मिलके जग-में।
गुरु ज्ञान भरो अपने उर-में,
तब स्वर्ग दिखे गुरु के पग-में।।
गुरु पावन है परमेश्वर से,
गुण श्यामल हैं छलिया ठग-में।
मत लोचन बंद रखो अपने,
कटु-शूल पड़े गुणियो मग-में।।
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प्रभुपग धूल

 

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