आओ मनभावन,बनकर सावन, सूख रही सुख-धार।
मरहठा छंद
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10-8-11 चरणान्त 21
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1-
आओ मनभावन,बनकर सावन,
सूख रही सुख-धार।
टालो गिरधारी,संकट भारी,
हर-कर भू का भार।।
बेटी रो-रो कर,सुध-बुध खोकर,
करती करुण पुकार।
आकर खलचारी,खींचे सारी,
शीघ्र करो संहार।।
2-
प्रभु बनकर काली,खप्पर वाली,
करो रक्त का पान।
प्रभु भौंह चढ़ाकर,क्रोध बढाकर,
हरलो अति-अभिमान।।
प्रभु चक्र चलाकर,युद्ध कला कर,
शीश काट दो आन।
प्रभु सुनकर विनती,गिन-गिन गिनती,
मारो खल भगवान।।
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प्रभुपग धूल