हाँ सच मुच शरद पूर्णिमा है, अमृत वर्षा होती है।
ताटंक छन्द
हाँ सच मुच शरद पूर्णिमा है,
अमृत वर्षा होती है।
सोलह कला शशी पर सोहें,
श्री हरि लीला सोती है।।
मुरली मोहन मधुर सुनाते,
नाचे राधा खोती है।
शशि चाँदनी छिटकी सरसों सि,
घना अँधेरा धोती है।।
हाँ सचमुच—
लावड़ी छन्द
गिरधारी नाचें गोपिन सँग,
प्यारी शरद पूर्णिमा है।
मोह धुँआ में अंधे हैं हम,
आभा अलख ढूढ़ना है।।
किरण चंद्र की रग रग फैली,
फिर भी चाँद घूरना है।
प्रभु पग धूली उड़ती वन में,
धूरा लोट रूठना है।।
हाँ सच मुच–
प्रभु पग धूल
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश