सोरठा छंद
सोरठा छंद
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1
हरि चरणों से दूर,
नहीं दास को कीजिए।
इच्छा है भरपूर,
कार्य निरंतर लीजिए।।
2-
सुखमय हो संसार,
ज्योति जला-दो ज्ञान की।
भर गुण का भंडार,
तपन हरो अभिमान की।।
3-
सुख-सुविधा की चाह,
नहीं राम के भक्त को।
मिले धर्म की राह,
नहीं चूसिए रक्त को।।
4-
जपूँ आपका नाम,
प्रभु-वर सुत को दीजिए।
सुखद नाम घनश्याम,
भक्ति सुधा रस पीजिए।।
5-
प्रभुपग प्रभु का धाम,
स्वर्ग लोक से नेक है।
कण-कण में है राम,
लेकिन ईश्वर एक है।।
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प्रभुपग धूल