कुंडलिया
कुंडलिया
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सृजन शब्द-संकट
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1-
संकट सारी सृष्टि के,
नष्ट करो भगवान।
नष्ट नहीं जो हो सकें,
दो हमको श्री मान।।
दो हमको श्री मान।।
सुखी हो दुनियाँ सारी।
देकर गुरु वरदान,
भक्ति रस-दो गिरिधारी।।
प्रभुपग की रज जान,
दूर कर-दो हर झंझट।
करें आपका काम,
टाल दो भीषण संकट।।
2-
संकट में यह सृष्टि है,
बढ़े वेग से पीर।
ईश्वर मेरे शीघ्र ही,
वर्षा दो सुख नीर।।
वर्षा दो सुख नीर,
सुखी हों सब नर-नारी।
खिलें धर्म के पुष्प,
सुगंधित हो संसारी।।
प्रभुपग हृदय अधीर,
पाप का मग है वंकट।
हे मेरे रघुवीर,
काट दो सारे संकट।।
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प्रभुपग धूल