कुंडलिया
(सिंहावलोकन)
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सावन वर्षे प्रेम का,
नाचे मन का मोर।
मोर नाचता देख के,
करती कोयल शोर।।
करती कोयल शोर,
दमकती नभ में दामिन।
दामिन मणि सम देख,
सुखी होती है कामिन।।
कामिन प्रभुपग चोर,
चुराती है मन-पावन।
पावन प्रेमिल भोर,
मृदुल है प्रेमिल सावन।।
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प्रभुपग धूल