गुजरे हुए मधुर पल, मत भूल पा रहे

बह्र
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221 2121 1,
221 212
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तरु पे लगे मधुर फल,
कटु शूल पा रहे।।
गुजरे हुए मधुर पल,
मत भूल पा रहे।।

सूखा हुआ नदी जल,
फिरसे मिले किधर।
सिकुड़े हुए कमल दल,
मत फूल पा रहे।।

हिम सा रहा पिघल दिल,
रुकता नहीं प्रिया।
झूला बना धरातल,
मत झूल पा रहे।।

कडुआ हुए मृदुल फल,
कैसे चखें सनम।
भूतल बना रसातल,
मत धूल पा रहे।।

हिलने लगा धरातल,
दिल काँपने लगा।
प्रभुपग अमर लता सम,
मत मूल पा रहे।।

वन में गया भटक मृग,
मत राह मिल रही।
बरछी लिए रहे हम,
मत हूल पा रहे।।
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प्रभुपग धूल

 

 

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