कान्हा तू घट-घट का वासी

चौपाई छंद
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कान्हा तू घट-घट का वासी।
तेरे दर्शन की अभिलाषी।।
तुम विन कान्हा कोन उबारे।
भव सागर में कौन सॅंभारे।।
मै तेरे चरणो की दासी ।
तू है शुभकर मंगल रासी।।
दर्शन दे दे ओ वनवारी।
मैने तेरी राह निहारी।।
आजा वृन्दावन के वासी।
तुम हो मथुरा तुम हो काशी।
मैं तेरे दर्शन की प्यासी।
तू है अजय अमर अविनाशी।।
ओ कान्हा तू है घट -घट का वासी

स्वरचित मौलिक सृजन सौदामिनी खरे दामिनी रायसेन मध्यप्रदेश ✍🏻

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