बनकर झाड़ू मात तुम्हारी, करूँ साफ कचड़ा भारी।
लावणी
छंदाधारित गीत
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बनकर झाड़ू मात तुम्हारी,
करूँ साफ कचड़ा भारी।
रहकर माँ के कर कमलों में,
हरूँ आज विपदा सारी।।
1-
रोग-दोष झाडूँ दुखियों के,
दोष झाड़ दूँ पापी के।
अवगुण झाडूँ दानव दल के,
दोष झाड़ दूँ तापी के।।
मान बढ़ेगा मेरी माँ का,
हर्षित होंगे नर-नारी।
रहकर माँ के———–
2-
धूलि झाड़ दूँ क्रोधी जन की,
मान बढ़ा दूँ ज्ञानी का।
लोभ झाड़ दूँ लोभी जन का,
मान बढ़ा दूँ दानी का।।
भूख झाड़ दूँ भूखे जन की,
भरे धर्म से भंडारी।
रहकर माँ के————
3-
देश द्रोह का कचड़ा झाडूँ,
ध्यान लगाकर काली का।
शुचित हृदय करके जननी का,
बाग खिला दूँ माली का।।
धूलि झाड़ दूँ मैले मन की,
खिलें पुष्प से सतधारी।
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प्रभुपग धूलि