गुरु पद-रज ही संजीवन है
राधारमण छंद
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विधान~
[नगण नगण मगण सगण]
(111 111 222 112)
12 वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]
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1-
गुरु पद-रज ही गंगा जल है।
हरि पद-रज ही मीठा फल है।।
गुरु-गुण हिम से भी सोमल है।
गुरु-मन कमलों से कोमल है।।
2-
यह स्वर चलता है ईश्वर से।
यह जग चलता है श्रीधर से।।
सद्गुण मिलता योगेश्वर से।
यह तन चलता प्राणेश्वर से।।
3-
गुरु-मन विमला से पावन है।
गुरु-गुण कमला से भावन है।।
गुरु-घर सच में वृंदावन है।
गुरु पद-रज ही संजीवन है।।
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प्रभुपग धूल