गिरिधारी छंद
गिरिधारी छंद
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विधान~
[ सगण नगण यगण सगण ]
( 112 111 122 112)
12 वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]
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1-
मनभावन बस जाओ मन-में।
सुख-सावन बरसाओ तन-में।।
मत मोहन उलझाओ धन-में।
मत चंचल भटकाओ वन-में।।
2-
सुखसागर गिरिधारी भर-दो।
उर शीतल गिरिधारी कर-दो।
सिर पे कर गिरिधारी धर दो।
हरि आकर मन-प्यारा वर-दो।।
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प्रभुपग धूल