गंगोदक सवैया (ऽ।ऽ रगण×8) ——————————— सृजन शब्द-ज्ञान गंगा
गंगोदक सवैया
(ऽ।ऽ रगण×8)
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सृजन शब्द-ज्ञान गंगा
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212 212 212 212,
212 212 212 212
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1-
ज्ञान गंगा बहाते चलो राष्ट्र में,
ज्ञान पौधे लगाते रहो बाग में।
बाल-बच्चे पढ़ाते रहो प्रेम से,
नेक शिक्षा भरो रागनी-राग में।।
ज्ञान के दीप प्यारे जलाते रहो,
मित्र बाँटो नहीं राष्ट्र को भाग में।
साथ देते रहो राष्ट्र के काज में,
साथ मित्रो जलें कर्म की आग में।।
2-
ज्ञान गंगा लगे स्वर्ण सी साथियो,
मूर्ख ज्ञानी बने ज्ञान की तान से।
चाँद-तारे खिलें ज्ञान से मान के,
बाल-बच्चे लगें चाँद से ज्ञान से,
लोग हीरा बनें ज्ञान के भानु से,
भक्त हीरा बनें राम के गान से।
धर्म गंगा बहे ज्ञान से राष्ट्र में,
पुण्य पौधे उगें ज्ञान के दान से।।
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प्रभुपग धूल