*श्रीलंका की अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषद में ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की ओर से शोधनिबंध प्रस्तुत !सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित करनेवाले वस्त्रों को बढावा दें !* – महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय
_*महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय का हिन्दी प्रसिद्धीपत्रक*_
दिनांक : 26.8.2022
*श्रीलंका की अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषद में ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की ओर से शोधनिबंध प्रस्तुत !सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित करनेवाले वस्त्रों को बढावा दें !* – महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय
‘रंग, कलाकृति (डिजाइन), कपडे की गुणवत्ता तथा वस्त्र का आकार अथवा प्रकार इनके अपने विशिष्ट सूक्ष्म स्पंदन होते हैं तथा इसलिए वे आध्यात्मिक स्तर पर हमें प्रभावित करते हैं । वस्त्रों का हमारी देह से पूरे दिन संपर्क रहता है । इसलिए उनका हमपर शारीरिक तथा मानसिक स्तर पर आध्यात्मिक दृष्टि से अधिक परिणाम होता है, ऐसा महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा किए आध्यात्मिक शोध से स्पष्ट हुआ है । इसके अतिरिक्त वस्त्र उत्पादन की प्रक्रिया, उत्पादन स्थल का वातावरण, सिलाई करनेवाला तथा जिस दुकान से उसे खरीदा गया है, ये घटक भी वस्त्र के स्पंदनों को प्रभावित करते हैं । इसलिए हमें सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित करनेवाले वस्त्रों को बढावा देना चाहिए’, ऐसा प्रतिपादन महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के श्री. शॉन क्लार्क ने किया । वे ‘द फिफ्थ इंटरनेशनल कॉन्फ्रेन्स ऑन एपैरल टेक्सटाईल्स एण्ड फैशन डिजाइन’ इस परिषद में बोल रहे थे । इस परिषद का आयोजन ‘ग्लोबल एकेडमिक रिसर्च’, श्रीलंका ने ‘ऑनलाइन’ किया था । श्री. क्लार्क ने इस परिषद में ‘रंग, डिजाइन, वस्त्र तथा फैशन का सूक्ष्म स्पंदनों पर कैसा परिणाम होता है ?’ यह शोधनिबंध प्रस्तुत किया ।
महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवले इस शोधनिबंध के लेखक तथा श्री. शॉन क्लार्क सहलेखक हैं । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा वैज्ञानिक परिषदों में प्रस्तुत किया गया यह 96 वां प्रस्तुतीकरण था । विश्वविद्यालय की ओर से अभी तक 17 राष्ट्रीय तथा 78 अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषदों में शोधनिबंध प्रस्तुत किए गए हैं । इनमें से 11 अंतरराष्ट्रीय परिषदों में ‘सर्वोत्कृष्ट प्रस्तुतीकरण के पुरस्कार’ मिले हैं ।
श्री. क्लार्क ने महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से वस्त्रों के विविध पहलुओं के संदर्भ में किया शोधकार्य प्रस्तुत करते समय आरंभ में ‘युनिवर्सल ऑरा स्कैनर (यू.ए.एस.)’ नामक प्रभामंडल मापनेवाले उपकरण के माध्यम से किए जा रहे प्रयोग की जानकारी दी । उन्होंने कहा, सफेद और काले रंग के धुले हुए सूती कपडे का ‘यू.ए.एस.’द्वारा परीक्षण किया गया । काले रंग के कपडे में सकारात्मकता बिलकुल भी नहीं पाई गई । जबकि उसकी नकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल 17.87 मीटर था । इसके विपरीत सफेद रंग के कपडे में नकारात्मकता बिलकुल नहीं पाई गई । जबकि उसकी सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल 18.75 मीटर था । इस परीक्षण में एक व्यक्ति द्वारा काले और आगे सफेद कपडे पहनने पर उस व्यक्ति में विद्यमान सकारात्मकता एवं नकारात्मकता भी ‘यू.ए.एस.’द्वारा मापी गई । इसमें काले कपडे पहनने पर केवल 30 मिनट में व्यक्ति की नकारात्मकता 99 प्रतिशत बढी हुई पाई गई । सभी रंगों में काला रंग सर्वाधिक नकारात्मकता प्रक्षेपित करता है, ऐसा इस शोध में पाया गया । यह भी पाया गया कि यह नियम केवल निर्जीव वस्तुओं तक सीमित है, सजीव के लिए नहीं, उदा. त्वचा का रंग गोरा है अथवा काला ? इसका उस व्यक्ति के प्रभामंडल पर कोई परिणाम नहीं होता ।
कपडे पर बनी डिजाइन का कपडे पर होनेवाले परिणाम का अध्ययन करने हेतु एक ही प्रकार के 4 कपडे के टुकडों को ‘यू.ए.एस.’ से मापा गया । इसके अंतर्गत हलके नीले रंग के कपडे पर सफेद फूलों की कलाकृति युक्त पहला कपडा; श्वेत कपडे पर रंगीन फूलों की कलाकृति युक्त दूसरा कपडा; लाल-से गुलाबी रंग के कपडे पर फूलों की जटिल कलाकृति युक्त तीसरा कपडा तथा श्वेत रंग के कपडे पर खोपडियों की कलाकृति युक्त चौथा कपडा लिया गया । शोध में पाया गया कि पहला कपडा सर्वाधिक सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित करता है अर्थात सात्त्विक है । इसमें किंचित भी नकारात्मकता नहीं थी तथा सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल 17 मीटर था । दूसरे कपडे की नकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल 12 मीटर, जबकि सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल 1.25 मीटर था । तीसरे कपडे में 22 मीटर तक नकारात्मकता पाई गई तथा सकारात्मकता बिलकुल नहीं थी । खोपडियों की डिजाइन युक्त कपडा सर्वाधिक नकारात्मक था । उसकी नकारात्मकता 184 मीटर थी ! ‘पॉलीकॉन्ट्रास्ट इंटरफेरेन्स फोटोग्राफी (पिप)’ प्रणाली द्वारा किए परीक्षण में भी ऐसा पाया गया कि खोपडियों की डिजाइन युक्त कपडा कक्ष के वातावरण में नकारात्मकता बढा रहा है ।
विविध प्रकार के कपडों का ‘खरीदने के उपरांत’, ‘धोने के उपरांत’ तथा ‘इस्त्री करने पर’, ऐसे तीन चरणों में ‘यू.ए.एस.’द्वारा परीक्षण किया गया । इसमें ऐसा पाया गया कि कपडा धोने के पूर्व वातावरण में विद्यमान नकारात्मकता के कारण कपडा अधिक नकारात्मक होता है । इसे धोने के उपरांत कपडे के मूल स्पंदन ध्यान में आए । इस्त्री करने के उपरांत मूलतः नकारात्मक कपडे अधिक नकारात्मक, जबकि सकारात्मक कपडे अधिक सकारात्मक होते पाए गए । इनमें से रेशमी तथा सूती कपडों में अधिक सकारात्मक स्पंदन पाए गए । जबकि ‘पॉलिएस्टर’, ‘नायलॉन’, ‘जॉर्जेट’ तथा ‘लाइक्रा’ इन कपडों में अधिक नकारात्मक स्पंदन पाए गए । कपडा काटकर सिलने पर वह अधिक नकारात्मक बनता है, यह भी इस शोध में पाया गया । इसलिए साडी एक लंबा अखंड कपडा होने के कारण साथ ही वह जिस पद्धति से पहनी जाती है, इस कारण उसमें सकारात्मक स्पंदन अधिक मात्रा में प्रवाहित होते हैं, यह भी ध्यान में आया ।
अंत में समापन करते हुए श्री. क्लार्क ने कहा, जब किसी को सूक्ष्म स्तरीय स्पंदन समझ में आने लगते हैं; तब कहां से सकारात्मक स्पंदन तथा कहां से नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित हो रहे हैं, यह वह व्यक्ति सहज समझ सकता है । कपडों की डिजाइन बनानेवाले व्यक्तियों में सूक्ष्म स्पंदन समझने की क्षमता हो, तो उससे समाज को लाभ होगा, साथ ही कपडा खरीदनेवाले व्यक्तियों में सूक्ष्म स्पंदन समझने की क्षमता हो, तो वे भी सात्त्विक कपडे खरीद सकेंगे ।
आपका,
*श्री. आशिष सावंत,*
शोधकार्य विभाग, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय
(संपर्क : 9561574972)