मनहरण घनाछरी छंद
मनहरण घनाछरी छंद।
8,8,8,7
पदांत-212
सृजन शब्द-शिवरात्रि
निराकार निर्विकार,
शीश इंदु गंगा धार,
बोलो भोले जयकार,
कृपा तो दिखाइए।
अर्ध्नारीश्वर हो डोलें
जय जय बम बोलें
आई शिवरात्रि भोले
भाँग तो खिलाइए।
महाकाल महादेव,
आप हो देवों के देव,
कृपा करते हो सदैव,
धतुरा चढ़ाइए।
: गौरा संग व्याह करो,
मुण्डन की माल धरो,
सर्पो का श्रृंगार करो,
भस्मी अंग रमाइए।
तृप्ता श्रीवास्तव।