गीता-सार

गीता-सार
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(1)
कर्तापन का भाव ही, कहलाता अभिमान।
तथ्य यही समझा रहे, अर्जुन को भगवान।।

(2)
आसक्ति तज कर्म करे, बने यही निष्काम।
कर्म-दोष लगता नहीं, मिलें सुखद परिणाम।।

(3)
कर्म मनुज के हाथ में, फल दाता के हाथ।
आसक्ति तज कर्म करो, ऊँचा होगा माथ।।
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मुरारि पचलंगिया

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