सुन्दरी सवैया

सुन्दरी सवैया
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11+211*7 + 22
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11 211 211 211 211,
211 211 211 22
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1-
मनभावन हे सुखसागर मोहन,
मंगल मूरत हे गिरधारी।
दुख नाशक हे नटनागर सोहन,
कष्ट सभी हरलो बलधारी।।
विनती तुमसे करते हम आकर,
लाज़ रखो अब हे मनहारी।
भवसागर में अब नाव फँसी प्रभु,
पार करो हरि हे दुखहारी।।
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2-
मनमोहन हो तुम ही जग पालक,
मोहन ही हर पीर हटाते।
तन में प्रभु की अति पावन मूरत,
संकट के हरि मेघ छटाते।।
घनश्याम पिता तुम हो हम बालक,
श्याम सखा सम साथ निभाते।
ममता सुन है हरि में जननी सम,
गोद विठाकर खेल खिलाते।।
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प्रभुपग धूल
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश

 

 

 

 

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