मन्द मन्द वहतीं हैं यमुना, कल कल कल कल करतीं हैं।
🥀लावड़ी छंद🥀
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मन्द मन्द वहतीं हैं यमुना,
कल कल कल कल करतीं हैं।
रवी किरण सरिता में पड़तीं,
तारा गण सीं लगतीं हैं।।
समर समर समीर वन रसतीं,
व्याकुलता तन भरतीं है।
कोयल बोलत अमुआ डारन,
सुइ सीं बोलीं धसतीं हैं।।
मन्द मन्द —–
वन में सुमन खिले मन मन के,
तितलीं प्यारीं उड़तीं हैं।
भौरें गुंजन करें विपिन में,
राधा हरि सुध धरतीं हैं।।
सारँग नाचें बीच विपिन में,
श्यामा जू ना हँसतीं हैं।
नैना सावन जैसे बरसें,
बूंदें रुक रुक रसतीं हैं।।
मन्द मन्द—-
श्याम सजे हैं मिसरी जैसे,
चीटी श्यामा सजतीं हैं।
किन्तु रूप चुम्बक सो हरि को,
विना सत्य ना मिलतीं है।।
राधा सत्य सँपत कीं अगरीं,
कांहाँ सँग वन नचतीं हैं।
सत्य राह पै चलकें लक्ष्मी,
मिश्री जैसीं घुरतीं हैं।।
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🥀प्रभु पग धूल🥀
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश