सोच रहा हूँ मैं बन जाऊँ,पथिक किसी के प्यार का।

सोच रहा हूँ मैं बन जाऊँ,पथिक किसी के प्यार का।
राह देखता हूँ अब मैं भी,प्रियतमा के इन्तेजार का।।
वो भी सोच रही होगी,प्रियवर उसका मिल जाये।
समय शीघ्र ही आ जायेगा,प्रेम के उस इजहार का।।

सोच रहा हूँ…..

सोच रहा हूँ कैसी होगी,कैसा उसका तन होगा।
दिव्य रूप की काया होगी,और चंचल सा मन होगा।।
हवा की खुशबू सी महके वो, मेरे दिल के आँगन में।
बाट ताकती होगी वो भी,साजन के दीदार का।।

सोच रहा हूँ…..

विरहा में मन तड़प रहा, वो भी तड़प रही होगी।
किस्मत का लेखा देखो, बना हुआ है मन जोगी।।
मिले प्रेम मुझको उसका ही,जिसके सपने देखे हैं।
तब मानूंगा पा लिया मैंने,प्रेम तो अब संसार का।।

सोच रहा हूँ…..

स्वरचित,
[केसरवानी©चन्दन]
कानपुर नगर उत्तर प्रदेश
8090921177

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