भारत, डेनमार्क ने बौद्धिक संपदा सहयोग संबंधी समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किए

भारत, डेनमार्क ने बौद्धिक संपदा सहयोग संबंधी समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किए

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (डीपीआईआईटी) ने आज डेनमार्क के उद्योग, व्यापार एवं वित्तीय मामलों के मंत्रालय के डैनिश पेटेंट एवं ट्रेडमार्क कार्यालय के साथ बौद्धिक संपदा सहयोग के संबंध में एक समझौता पत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए। इस मौके पर डीपीआईआईटी के सचिव डॉ. गुरूप्रसाद महापात्र और डेनमार्क के राजदूत श्री फ्रैडी स्वेन ने इस समझौता पत्र पर औपचारिक तौर पर हस्ताक्षर किए।

 

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केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 15.09.2020 को हुई बैठक में आईपी सहयोग के मुद्दे पर डेनमार्क के साथ समझौता पत्र पर हस्ताक्षर करने को मंजूरी दी थी। इस समझौता पत्र का उद्देश्य दोनों देशों के बीच नीचे उल्लिखित तरीकों से आईपी सहयोग का विस्तार करना हैः

क) दोनों देशों की आम जनता, अधिकारियों, व्यावसायिक एवं अनुसंधान तथा शैक्षिक संस्थानों के बीच श्रेष्ठ तौर तरीकों, अनुभवों और ज्ञान का आदान-प्रदान।

ख) प्रशिक्षण कार्यक्रमों में परस्पर सहयोग, विशेषज्ञों का आदान प्रदान, तकनीकी और सेवा प्रदान करने की गतिविधियों का आदान-प्रदान।

ग) पेटेंट, ट्रेडमार्क, औद्योगिक डिज़ाइन और भूवैज्ञानिक संकेतकों के आलावा आईपी अधिकारों के इस्तेमाल, इसके संरक्षण और प्रवर्तन के लिए आने वाले आवेदनों को निपटाने की श्रेष्ठ प्रक्रिया और जानकारी का आदान प्रदान।

घ) आटोमेशन के विकास और परियोजनाओं के आधुनिकीकरण के कार्यान्वयन, आईपी के क्षेत्र में नवीन प्रलेखन एवं सूचना प्रणाली और आईपी के प्रबंधन की प्रक्रिया में परस्पर सहयोग।

च) पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण की दिशा में सहयोग, खासतौर से पारंपरिक ज्ञान संबंधी डाटाबेस के इस्तेमाल और वर्तमान आईपी प्रणाली के बारे में जानकारी प्रदान करना।

इस समझौता पत्र को लागू करने के लिए द्वैवार्षिक कार्ययोजना तैयार करने का काम दोनों देश करेंगे। इसमें सहयोगात्मक गतिविधियों को लागू करने के लिए खासतौर से गतिविधि के प्रयोजन के बारे में विस्तृत योजना तैयार करना शामिल होगा।

यह एमओयू भारत और डेनमार्क के बीच परस्पर दीर्घकालीन सहयोग को सुदृढ़ बनाएगा और दोनों देशों को एक दूसरे के अनुभवों, खासतौर से अन्य देशों में लागू की जाने वाली श्रेष्ठ प्रक्रियाओं के बारे में सीखने के अवसर उपलब्ध कराएगा। यह कदम भारत की वैश्विक नवाचार के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की दिशा में यात्रा के लिए और राष्ट्रीय आईपीआर नीति, 2016 के लक्ष्य को प्राप्त करने के रास्ते में मील का पत्थर साबित होगा।

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