नरक चतुर्दशी का अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व

सनातन संस्था का लेख

दिनांक : 02.11.2021

*नरक चतुर्दशी का अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व*

कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है । दीपावली के दिनों में अभ्यंग स्नान करने से व्यक्ति को अन्य दिनों की तुलना में 6 प्रतिशत अधिक सात्त्विकता का लाभ मिलता है ।

*इस तिथि के नाम का इतिहास इस प्रकार है* – पूर्व काल में प्राग्ज्योतिषपुर में भौमासुर नामक एक बलशाली असुर राज्य करता था । उसका एक अन्य नाम भी था – नरकासुर । यह दुष्ट दैत्य देवताओं और पुरुषों के साथ-साथ स्त्रियों को भी अत्यंत कष्ट देने लगा । जीतकर लाई हुई सोलह सहस्र राज्यकन्याओं को उसने बंदी बनाकर उनसे विवाह करने का निश्चय किया । सर्वत्र त्राहि-त्राहि मच गई । यह समाचार मिलते ही भगवान श्रीकृष्ण ने सत्यभामा सहित उस असुर पर आक्रमण किया । नरकासुर का अंत कर सर्व राजकन्याओं को मुक्त किया । वह दिन था शक संवत अनुसार आश्विन कृष्ण चतुर्दशी अर्थात विक्रम संवत अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी का । तब से यह दिन नरक चतुर्दशी के नाम से मनाते हैं ।’मरते समय नरकासुरने भगवान श्रीकृष्णसे वर मांगा, कि ‘आजके दिन मंगल स्नान करने वाला नरक की यातनाओं से बच जाए ।’ तदनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने उसे वर दिया । इसलिए इस दिन सूर्योदय से पूर्व अभ्यंग स्नान करने की प्रथा है । भगवान श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर को दिए गए वर के अनुसार इस दिन सूर्योदय से पूर्व जो अभ्यंग स्नान करता है, उसे नरकयातना नहीं भुगतनी पडती ।

*इस त्यौहार को मनाने की पद्धति :*

*अभ्यंगस्नान* – जब आकाश में तारे होते हैं तब ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अभ्यंग स्नान किया जाता है। दीपावली के दिनों में अभ्यंग स्नान करने से व्यक्ति को अन्य दिनों की तुलना में 6 प्रतिशत सात्त्विकता का अधिक लाभ मिलता है । सुगंधित तेल एवं उबटन लगाकर शरीर का मर्दन कर अभ्यंग स्नान करने के कारण व्यक्ति में सात्त्विकता एवं तेज बढता है ।

*यमतर्पण* – अभ्यंग स्नान के बाद अपमृत्यु को रोकने के लिए यम तर्पण किया जाता है । पंचांग में बताए अनुसार यम तर्पण कर सकते हैं। उसके उपरांत माँ, बच्चों की आरती उतारती है । कुछ लोग नरकासुर के वध के प्रतीक के रूप में कारीट (एक प्रकार का कड़वा फल) को अपने पैरों से कुचलते हैं, जबकि कुछ लोग इसका रस जीभ पर डालते हैं। उसके उपरांत दोपहर में  ब्राह्मण भोजन तथा वस्त्र दान किया जाता है । उसके उपरांत प्रदोष काल में दीप दान किया जाता है अर्थात दीपक जलाया जाता है । जिसने प्रदोष व्रत किया है, वे प्रदोष पूजा और शिव पूजा पूजा करते हैं ।

*ब्राह्मण भोजन* –  नरक चतुर्दशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन देने का अर्थ है, धर्मस्वरुप अवतरित होकर कार्य करने के लिए ब्राह्मणो के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना तथा इस माध्यम से ब्रह्माण्ड में संचालित होने वाली धर्म लहरियों को पुष्टि प्रदान करना। अवतारी कार्य की लिए तथा पृथ्वी पर आने वाले कष्टदायक अधोगामी लहरियों को नष्ट करने के लिए समष्टि की इच्छाशक्ति की पूर्तता करके प्रत्यक्ष स्वरुप में कार्य करने के लिए आह्वान करना। इस माध्यम से स्वयं में धर्म कर्त्तव्य लाकर ईश्वर के कृपाशीर्वादात्मक लहरियों को ग्रहण कर सकते हैं।

*वस्त्र दान* – वस्त्र दान करना अर्थात देवताओं की लहरियों को भूतल पर आने के लिए प्रेरित करना इस माध्यम से अपने धन संचय को धर्म स्वरूप कार्य के लिए अर्पण करके स्वयं की आध्यात्मिक उन्नति होती है।

भक्ति योग के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन ब्राह्मण भोजन करवाने का 20 प्रतिशत महत्व है, इसी प्रकार वस्त्र दान का 10 प्रतिशत, यमदीपदान का 20 प्रतिशत, प्रदोष पूजा का 20 प्रतिशत तथा शिव पूजा का 30 प्रतिशत इस प्रकार कुल 100 प्रतिशत महत्व है।

*सन्दर्भ*: सनातन द्वारा संकलित ग्रन्थ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव और व्रत’

*श्री. गुरुराज प्रभु*
सनातन संस्था
*संपर्क* – 99362 87971

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