प्रेम

शीर्षक -प्रेम

प्रेम है अनुभूति का विषय
जैसे हवा का बहना
खुशबू का महकना
रहता है मन में सदैव प्रेम भाव
जैसे रवि गगन में
फूलों की क्यारी उपवन में
होता है दुर्लभ सच्चा प्रेम
जैसे स्वाति नक्षत्र की बूँद
जैसे स्वर्ग सुख
अप्राप्य होता है प्रेम
जैसे परम् आनंद
जैसे देव दर्शन।
भौतिक प्रेम मात्र छलावा
जैसे सोने का मृग
जैसे स्वप्नों की दुनिया
आत्मिक प्रेम अमूल्य है
जैसे शुद्ध कंचन
जैसे शीतल चंदन
प्रेम सर्वत्र विद्यमान
जैसे प्राणवायु
जैसे धरा -गगन
प्रेम अवश्यम्भावी
जैसे जीवन की रेखा
जैसे मृत्यु का दंश
प्रेम सदैव अवर्णित
जैसे हृदय के भाव
मन के एहसास
प्रेम कांतिवान
जैसे ओजस्वी भास्कर
जैसे संत का आभामंडल
प्रेम का असीमित परिमाप
जैसे भूमि का विस्तार
जैसे अपरिमित आकाश
प्रेम सच्चा मित्र
जैसे कृष्ण-सुदामा
जैसे हंस का जोड़ा
प्रेम सदैव आरामदायक
जैसे दर्दनिवारक औषधि
जैसे माँ की गोद।

प्रीति चौधरी “मनोरमा”
जनपद बुलन्दशहर
उत्तरप्रदेश
मौलिक एवं अप्रकाशित।

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