नहीं टोकते- नहीं रोकते,
विषय:- #जिह्वा
विधा:- #कविता
दिनांक:- ०९/०९/२०२१
स्वरचित
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नहीं टोकते- नहीं रोकते,
नहीं रखा है बंधन इस पर।
सबको मीठी वाणी भाती,
जिम्मा है जिह्वा के ऊपर।
सब कहते तोलो फिर बोलो, मंत्र बड़ा ही है सुखदाई।
नही कचोटे अपनी बातें, याद रखें हम यही दुहाई।
जो मन कहता जिह्वा बोले, हो विचार ज्यों बहता निर्झर।
नहीं बोल कड़वे होते हैं, ना मिठास उनमें मिलती है।
कुछ कड़वाहट वक्ता हिय में, कुछ श्रोता दिल में पलती है।
मन में आया वही कह दिया, जिह्वा का है दोष कहाँ फिर?
रखें नियंत्रण जिह्वा पर भी, लोग सदा ऐसा कहते हैं।
मन ही मन अपशब्द बोलते, बन अनभिज्ञ वही रहते हैं।
उनसे कहें- यदि मन निर्मल हो, जिह्वा पुष्प बिखेरे झर-झर।
कभी-कभी मौके आते हैं, ध्यान हमें है रखना पड़ता।
जिह्वा बोले-बोले जाये, यह आचार बुरी छवि जड़ता।
मन-वाणी दोनों संयत हों, फिर जुबान जीते सबके उर।
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लोकेन्द्र कुम्भकार
शाजापुर (मध्यप्रदेश)।