संस्कारों की महिमा
*संस्कारों की महिमा*
संस्कृति और संस्कार हमारे
है जीवन की अनमोल धरोहर।
इनके बिना ,अधूरे हम सब,
ये ही तो हैं अपने पुण्य सरोवर।।
ज्यों किसी बाग की डाली में,
होवे केवल काँटों,पांतों का डेरा।
औ ज्यो तारों बिन यामिनी होवे,
औ ज्यों होवे, रवि बिना सवेरा।
वैसे ही अपने मानव तन में,
संस्कारों बिन है सब कुछ सूना।
कितना भी होवे धन औ ज्ञान,
पर रिक्त रहे अंतर्मन का कोना।।
विद्या विनय से होती है पूरी,
और विनय से है आती धीरता।
यही धीरता आ गहन रूप में,
लाती है संस्कारों की शुचिता।।
औ जब हममें आ जाये संस्कार,
और कर्म हमारे हो श्रेष्ठ ,अनूप।
तब यही श्रेष्ठता देती दैवत्व हमें,
औ हम हो जाते तब देव स्वरूप।।
अतः परमावश्यक हैं ये संस्कार,
ये तो हैं धन वैभव से भी उत्तम।
संस्कारों से मिले धन को भी गति,
यह पूँजी ,तो है जग में सर्वोत्तम।।
ममता श्रवण
अग्रवाल
ऑथर
सतना
मध्य प्रदेश 8319087003