चली आ पास ओ पगली

चली आ पास ओ पगली

गई थी मिल चली आई,
बता क्या तू गले लग ली ??
पवन तुझको नमन मेरा,
चली आ पास ओ पगली ।।

नये परिवेश में जाकर,
नये सन्देश पहुँचा कर ।।
चली आई मुझे कहने,
भला इस राह पर इकली ।।
पवन तुझको नमन मेरा,
चली आ पास ओ पगली ।।1।

नहीं उनसे मिली हो क्या,
दिखो निस्तेज वापस आ,
हुआ क्या कुछ बताओ तो ,
कि क्यों तुम दिख रहीं दहली ।।
पवन तुझको नमन मेरा,
चली आ पास ओ पगली ।।2।

मिलीं जब आज तुम उनको,
बताया राज कुछ तुमको ।।
विरह पीड़ित लगी थी वो,
न खिल पाई कली कुचली ।।
पवन तुझको नमन मेरा,
चली आ पास ओ पगली ।।3।

अभी लहरा रही हो तुम,
बड़ी इतरा रही हो तुम ।।
गले मिलकर वहाँ उनसे,
नहीं हर बात तो उगली ।।
पवन तुझको नमन मेरा,
चली आ पास ओ पगली ।।4।

बड़ा विह्वल हुआ जब मैं,
नहीं निर्बल हुआ तब मैं ।।
कहाँ विस्मृत हुआ कुछ भी
न भूली याद वो पिछली ।।
पवन तुझको नमन मेरा,
चली आ पास ओ पगली ।।5।

कभी क्या छू सकूँगा मैं
विकल ही बस रहूँगा मैं ??
मुझे हतभाग मत समझो,
हृदय की बात सब कहली ।।
पवन तुझको नमन मेरा,
चली आ पास ओ पगली ।।6।
••••निर्भय नारायण गुप्त ‘निर्भय’

गोमतीनगर,लखनऊ
‌ उत्तर प्रदेश

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