दोहा

(विधा- दोहा)

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यूँ तो बारह मास हैं, मास एक सुपुनीत।
सावन बेहद खास है, सबकी उससे प्रीत।।१।।

शैलसुता तपशील थी, आया सावन मास।
हर्षित शिव वर दे दिये, करो वास कैलास।।२।।

देवशयन को चलि गये, हरि पाये विश्राम।
महादेव पालक अभी, पूजे जगत तमाम।।३।।

शिव महिमा गाते सभी, शिव को प्रिय है मास।
शिवालयों में भीड़ है, पूरित हो सब आस।।४।।

चार माह बरसात के, पूजें शिव परिवार।
शंकर सँग गौरी भजैं, उतरें भव के पार।।५।।

विनय भावना देखते, रूद्र रूप त्रिपुरारि।
श्रद्धा से जो नत रहे, करते कृपा अपार।।६।।

कावड़ में जल ले चले, कावड़िएँ निष्पाप।
शिव पर जल जब वार दे, मिटे जगत के ताप।।७।।

शिव आराधन नित करें, गायें हम गुणगान।
सावन अति पावन बने, जपें शंभु भगवान।।८।।

एक मास बहु मोल का, सबको इससे आस।
जब सावन बरसे नहीं, अटके जग की श्वाँस।।९।।

रिमझिम सावन गिर रहा, छायी हृदय उमंग।
शिव मंदिर सजते सभी, मौसम के बहु-रंग।।१०।।

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लोकेंद्र कुम्भकार
शाजापुर (मध्यप्रदेश)।

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