साँची-सुरभि
*साँची-सुरभि*
*जीवन अनमोल*
*द्रुतविलम्बित छंद*
मनुज जन्म मिला अनमोल है ।
अमृत का यह तो शुचि घोल है ।
अब इसे मत व्यर्थ गँवाइए ।
तन मिला शुभ हर्ष मनाइए ।।
भटक योनि कई फिरता रहा ।
मन सदा दुख में घिरता रहा ।
अब मिला तन तो सुख पाइए ।
विजय दीप लिए सब आइए ।।
मधुर हास्य खिले मुख हर्षिता ।
नयन हो शुभदा सम दर्शिता ।
मत रहे तम की बदली कहीं ।
दुख भरे पथ पाँव रखो नहीं ।।
बन दिवाकर पुंज बिखेरिए ।
पग सुकर्म भरे पथ फेरिए ।
अति अलौकिक दिव्य प्रकाश हो ।
जग हँसें दुख का सब नाश हो ।
सुमन सा मन ये महकाइए ।
हृदय को सुख से भर जाइए ।
मनुज जीवन बोझ नहीं बने ।
मिट चले दुख क्लेश सभी घने ।।
*इन्द्राणी साहू”साँची”*