उठे जब भी कलम

*उठे जब भी कलम*

उठे जब भी कलम कुछ ऐसा लिखे।
प्रभाव जिसका इस समाज में दिखे।

कलम वह हथियार है जो वार तेज करती है।
किसी गोले किसी बारूद से नहीं डरती है।
समाज में परिवर्तन का हौंसला रखती है।
तुम भी लिखो वह सब झलक जिसकी दिखे।
उठे जब भी कलम कुछ ऐसा लिखे।

लिखो तुम प्रहार जो प्रकृति पर रोज होते हैं,
लिखो जो अत्यचार नारियों पर सदा होते हैं।
भ्रष्टाचार हर तरफ फलीभूत है वह भी दिखे।
उठे जब भी कलम कुछ ऐसा लिखे।
समाज में घृणित काज नित हो रहे,
बच्चों के सामने देखो बूढ़े रो रहे ,
लिखो कुछ आईना जो सबको दिखे।
उठे जब भी कलम कुछ ऐसा लिखे।।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम

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