◆ कनक मंजरी छंद ◆

◆ कनक मंजरी छंद ◆
शिल्प~
[4 लघु+ 6भगण (211)+1गुरु] = 23 वर्ण
चार चरण समतुकांत]
या
{1111+211+211+211
211+211+211+2}
1-
सुखकर सोहन सूरत सुंदर,
सागर हो सुख के तुम ही।
मनहर मोहन हे नट नागर,
नाशक हो दुख के तुम ही।।
तन मन में रहते तुम चंचल,
पालक हो जगके तुमही।
कण कण में रहते सुख सागर,
चालक हो सबके तुमही।।
2-
हर पल हे हरि हे मन मोहन,
दीपक से जगते तन में।
मनहर को मुनि खोज रहे वन,
मोहन हैं मुनि के मन में।।
रवि सम रोशन हैं सुखदायक,
सोहन खेल रहे वन में।
प्रभुपग ईश्वर को चल खोजन,
क्यों अब तू उलझा धन में।।
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प्रभुपग धूल
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश

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