तर्ज- बरसात की धुन—- राष्ट्रीय गीत

तर्ज-
बरसात की धुन—-
राष्ट्रीय गीत
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आओ देश मेरे खुशी से तुम्हें भी घुमाता हूँ।
अब आसमान से पानी नहीं तीन रंग बरसेंगे।।
इस देश की मिट्टी है न्यारी।
इस देश की धरती हीरे देती है।।

हिन्द सागर का जल छलके लहरती है यमुना जिसमें।
गुजारा सबका होता है ठहरती है गंगा इसमें।।
प्यार भरा है गंगा का जल।
कल कल कल जल धार की कल कल।।

सिर पे हिमालय मुकुट सजता है।
दूर हिन्द से रिपु करता है।।
राष्ट्र गीत गाती है पल पल।
कल कल कल जल धार की कल कल।।

रणमें मरते लड़के आगे फिर ऐ पाया है दिन प्यारा।
यादें अमर शहीदों कीं नहीं दिल से भुला पाते।।
बतलाऊँ कैसे मैं तुमको।
भारी गम है उरमें हमको।।

यादों में ही खो रहा है मन मेरा,
वो कब आएंगे घर रण से।
लौट आओ जी तुम घर में,
हमारा हिन्द हरसाए।।
देख रही माँ भारत राहें,
नैन से बरसे सावन सा जल।
हो हो हो हो—-

लोचन से टपकती बूँदों ने गोद भीगा दी है।
इन आंखों की बारिश ने भी नींद उड़ा दी है।।
नभमें ध्वज फहराने को इक लाल हिन्द का काफी है।
जागेगा अगर ऐ भारत सुनो काल सा भारी है।।
पास रुके मत दुश्मन का दल।
कल कल कल जल धार की कल कल।।

गंगा बहती लहर गए हम ।
तिरंगा लहरा हर्ष गए हम।।
साथ में बह जाने को चल।
कल कल कल जल धार की कल कल।।
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प्रभुपग धूल
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश

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