राष्ट्रीय गीत

तर्ज -उड़ जा काले कावां
तेरे मुँह विच खंड पावाँ
राष्ट्रीय गीत
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सबसे सुंदर मेरा भारत,
मिट्टी उगले हीरा।
खेतों की मिट्टी है सोना,
पैदा होते जीरा।।
गंगा की धारा है प्यारी,
हिमालय सी है चोटी।
मोहन देशी मिट्टी खाके,
खेलें गोटी गोटी।।
कि सिर मेरा झुक जाए।
कि माटी इसकी मन भाए।।
1-
आँखें नीर भरीं हैं,
माँ कीं रण में लाल गवाएँ।
सोच रही है प्यारी बहना,
भाई कैसे पाएँ।।
माँग माँगती रो रो सजनी,
मन में यादें भारी।
भारी पीड़ा को सहके,
हँसती है भारत नारी।।
ऐ सिर मेरा झुक जाए,
कि माटी इसकी मन भाए है।
2-
रक्षा सेना करती हैं,
तब हम सुखसे सोते हैं।
अस्त्र शस्त्र के गहने तनमें,
रण में तन खोते हैं।।
पीठ दिखाते मत वो रणमें,
ठोकर भी हैं खाते।
मार के पापी आते जब,
तब ही मुड़के घर आते।।
कि सेना मुझे मनभाए,
कि माटी इसकी मनभाए है।
3-
इक सुत सीमा पे लड़ता,
दूजा खेती करता है।
माता तेरे लालन प्यारे,
रो रो दिल भरता है।।
मात दुखी मत होना तू अब,
प्रभुपग धीर बँधाते।
अमर हैं माँ लालन तेरे,
हम सच तुमको बतलाते।।
के उनके सभी गुण गाएँ।
कि मिट्टी इसकी मनभाए।
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प्रभुपग धूल
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश

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