यूपी में कोंग्रेस की सरकार बनते ही आल्हा उदल की वीर भूमि को दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा : ठा संजीव कुमार सिंह

यूपी में कोंग्रेस की सरकार बनते ही आल्हा उदल की वीर भूमि को दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा : ठा संजीव कुमार सिंह

लखनऊ। राष्ट्रीय नेता, इंडियन नेशनल कांग्रेस एआईसीसी पर्यवेक्षक प्रभारी, बिहार झारखंड उत्तर प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी, एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया, सदस्य इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ ज्यूरिस्ट्स सचिव, कांग्रेस किसान एवं औद्योगिक प्रकोष्ठ, कानूनी सलाहकार सदस्य, चुनाव प्रचार समिति बिहार झारखंड उत्तर प्रदेश पश्चिम बंगाल और आसाम एवं लोकसभा चुनाव 2024 के प्रधानमंत्री पद के दावेदार ठाकुर संजीव कुमार सिंह ने बताया कि प्राचीन समय में महोबा बुन्देलखण्ड की राजधानी था। महोबा को बुन्देलखण्ड की वीरभूमि भी कहा जाता है। यह वीर आल्हा-ऊदल का नगर कहलाता है। भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के महोबा ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। यूपी में हमारी सरकार बनते ही आल्हा उदल के आसपास के क्षेत्रों को दर्शनीय स्थल का चहुमुखी विकास किया जाएगा। जिसे स्थानीय रोजगार से जोड़ा जाएगा। वहां केंद्रीय खेल विद्यालय खोले जाएंगे। जिससे आल्हा उदल की वीरता और आल्हा ऊदल की वीरता को पाठ्यक्रम से शामिल किया जाएगा। केंद्रीय विद्यालय खोले जाएंगे और इनमें महुआ जिला आसपास के जिला के विद्यार्थियों को प्राथमिकता दी जाएगी। आल्हा किले के पास खाली जमीन पर आला उदल की वीरता के किस्सों की गायकी के रूप में लाइट एंड साउंड शो के जरिए चित्रण कर दिखाया जाएगा,जिससे आज के युवाओं में वीर आल्हा उदल के जीवन से वीरता की प्रेरणा मिलेगी व आसपास के क्षेत्रों में अच्छे नस्ल के घोड़ों के फॉर्म बनाये जायेगे और बहतरीन घुड़सवार घोड़े तैयार किए जाएंगे। यहां से अच्छे नस्ल के घोड़ों को सेना व पुलिस बल को भेज दिया जाएगा तथा उस जगह को भूमि चारागाह के रूप में विकसित किया जाएगा। जिससे गांव के किसान अच्छी घास की पैदावार कर घोड़ा फार्मो को विक्रय कर आमदन कर सकेंगे। वहां युवाओं के लिए प्रशिक्षण का उत्तम साधन बनाया जाएगा। जिससे युवा सहायक प्रशिक्षण प्राप्त कर नौकरियों में भर्ती हो सके तथा महुआ व आसपास के जिलों का संपूर्ण विकास किया जाएगा। प्रशिद्ध जगहों के आसपास में होटल तथा बाजार विकसित किए जाएंगे। सड़कों का चौड़ीकरण व सौंदर्यीकरण किया जाएगा। जिससे युवाओं को रोजगार उपलब्ध होंगे और वीर भूमि के लोगों के जीवन में खुशहाली का संचार होगा। क्योंकि कोंग्रेस सदैव बनाने का काम करती हैं बेचने का नहीं।

श्री सिंह ने बताया कि हम सब जानते हैं कि महोबा ऐतिहासिक बुन्देलखण्ड क्षेत्र में स्थित है और यहाँ का प्रचीन सूर्य मंदिर प्रसिद्ध और विश्व प्रसिद्ध खजुराहो के लिए प्रसिद्ध है। वहीं दूसरी ओर गोरखगिरी पर्वत, ककरामठ मंदिर, चित्रकूट और कालिंजर आदि के लिए भी विशेष रूप से जाना जाता है। महोबा झांसी से १४० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह स्थान काफी महत्वपूर्ण है। 2022 में कोंग्रेस की सरकार बनते ही प्रसिद्ध आल्हा – ऊदल की वीरभूमि महोबा को ट्यूरिजम पैलेस के रूप से विकसित किया जाएगा। महोबा में काफ़ी समय तक चन्देलों ने शासन किया है। अपने काल के दौरान चंदेल राजाओं ने कई ऐतिहासिक किलों और मंदिरों आदि का निर्माण करवाया था। इसके पश्चात् इस जगह पर प्रतिहार राजाओं ने शासन किया। महोबा सांस्कृतिक दृष्टि से काफी प्रमुख माना जाता है। पहले इस जगह को महोत्सव नगर के नाम से जाना जाता था, लेकिन बाद में इसका नाम बदल कर महोबा रख दिया गया। महोवा स्थित गोरखगिरी पर्वत एक खूबसूरत पर्यटक स्थल है। इसी पर्वत पर गुरू गोरखनाथ कुछ समय के लिए अपने शिष्य सिद्धो दीपक नाथ के साथ ठहरें थे। इसके अलावा यहां भगवान शिव की नृत्य करती मुद्रा में एक मूर्ति भी है। प्रत्‍येक पूर्णिमा के दिन यहां गोरखगिरि की परिक्रमा की जाती है। सूर्य मंदिर राहिला सागर के पश्चिम दिशा में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण राहिला के शासक चंदेल ने अपने शासक काल ८९० से ९१० ई. के दौरान नौवीं शताब्दी में करवाया था। इस मंदिर की वास्तुकला काफी खूबसूरत है। महोबा से खजुराहो ६१ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। विश्व प्रसिद्ध मंदिर खजुराहो महाबो के प्रमुख व प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। इस मंदिर का निर्माण ९५० ई. और १०५० ई. में चन्देलों द्वारा करवाया गया था। इस मंदिर के आस-पास २५ अन्य मंदिर भी है। इस मंदिर की वास्तुकला बहुत आकर्षक है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। महोबा से १०९ किलोमीटर की दूरी पर स्थित कालिंजर किलों के लिए काफी प्रसिद्ध है। १५वीं और १९वीं शताब्दी के मध्य में इस किले का विशेष महत्व रहा है। किले के भीतर कई अन्य जगह जैसे नीलकंठ मंदिर, सीता सेज, पटल गंगा, पांडु खुर्द, कोटि तीर्थ और भैरों की झरिद आदि स्थित है। शिव तांडव मंदिर गोरखगिरी पर्वत के करीब ही स्थित है, जैसा कि नाम से ही पता चलता है, एक मंदिर जो भगवान शिव को समर्पित है। यहां भगवान शिव की प्रतिमा नटराज स्वरूप में स्थापित है। यह मूर्ति एक काले ग्रेनाइट पत्थर से बनाई गई है। नटराज रूप में शिव की मूर्ति इस क्षेत्र में सबसे दुर्लभ मूर्तियों में से एक है। सबसे निकटतम हवाई अड्डा खजुराहो विमानक्षेत्र है। खजुराहो से महोबा ६५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। महोबा ग्‍वालियर, दिल्ली और मुम्बई आदि जगहों से रेलमार्ग द्वारा जुड़ी हुई है। महोबा कई प्रमुख शहरों से सड़कमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। राष्ट्रीय राजमार्ग 34 यहाँ से गुज़रता है। महोबा से १२७ किलोमीटर की दूरी पर स्थित चित्रकूट की प्राकृतिक सुंदरता काफी अद्भुत है। चित्रकूट अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। माना जाता है कि भगवान राम और सीता ने अपने चौदह वर्ष यहीं पर बिताए थे। कालिञर वह प्रसिद्ध स्थान है जहा शेर शाह सूरी नामक शाषक की म्रत्यु हुई थी। 837 साल पहले महोबा के चंदेल राजा परमाल के शासन से कजली मेले की शुरुआत हुई थी। राजा परमाल की पुत्री चंद्रावल अपनी 14 सखियों के साथ भुजरियां विसर्जित करने कीरत सागर जा रही थीं। तभी रास्ते में पृथ्वीराज चौहान के सेनापति चामुंडा राय ने आक्रमण कर दिया था। पृथ्वीराज चौहान की योजना चंद्रावल का अपहरण कर उसका विवाह अपने बेटे सूरज सिंह से कराने की थी। उस समय कन्नौज में रह रहे आल्हा और ऊदल को जब इसकी जानकारी मिली तो वे चचेरे भाई मलखान के साथ महोबा पहुंच गए और राजा परमाल के पुत्र रंजीत के नेतृत्व में चंदेल सेना ने पृथ्वीराज चौहान की सेना से युद्ध किया। 24 घंटे चली लड़ाई में पृथ्वीराज का बेटा सूरज सिंह मारा गया। युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को पराजय का सामना करना पड़ा। युद्ध के बाद राजा परमाल की पत्नी रानी मल्हना, राजकुमारी चंद्रावल व उसकी सखियों ने कीरत सागर में भुजरियां विसर्जित कीं। इसके बाद पूरे राज्य में रक्षाबंधन का त्योहार मनाया गया। तभी से महोबा क्षेत्र के ग्रामीण रक्षाबंधन के एक दिन बाद अर्थात भादों मास की परीवा को कीरत सागर के तट से लौटने के बाद ही बहने अपने भाइयों को राखी बांधती हैं। आल्हा-ऊदल की इस वीरभूमि में आठ सदी बीतने के बाद भी लाखो लोग कजली मेले में आते हैं। वह शताब्दी वीरों की सदी कही जा सकती है और उस समय की अलौकिक वीरगाथाओं को तब से गाते हम लोग चले आते हैं। आज भी कायर तक उन्हें (आल्हा) सुनकर जोश में भर अनेकों साहस के काम कर डालते हैं। यूरोपीय महायुद्ध में सैनिकों को रणमत्त करने के लिये ब्रिटिश गवर्नमेण्ट को भी इस (आल्हखण्ड) का सहारा लेना पड़ा था। जिला महोबा ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह स्थान काफी महत्वपूर्ण है। 2022 उत्तर प्रदेश में कोंग्रेस की सरकार बनते ही प्रसिद्ध आल्हा – ऊदल की वीरभूमि महोबा को दार्शनिक स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा।

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