सभी पंक्षी हुए बेघर

“गीतिका”

सभी पंक्षी हुए बेघर
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न आती याद यदि तेरी,
न मेरा मन मचलता यों।
न पलकों पर सपन होते,
न मौसम भी बहकता यों।

प्रणय के मेघ घिर आते,
हवाएं यदि न चलती तो।
भिगो देती मुहब्बत से ,
अगर बादल बरसता यों।

कभी पीती न मैं आंसू,
न आँखों से नदी बहती।
अगर तुम पास होते तो,
न मेरा दिल तड़पता यों।

सभी पंक्षी हुए बेघर,
समय ने मात दी सबको।
अगर आंधी नहीं आती,
बसेरा क्यों उजड़ता यों।

जिसे पत्थर समझते हो,
उसे भी है नदी प्यारी।
न होती यदि मुहब्बत तो,
हिमालय क्यों पिघलता यों।

रेनू द्विवेदी
गोमती नगर, लखनऊ

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