भारतीय साहित्य संस्कृति का काव्य संवाद यात्रा कार्यक्रम संपन्न

*भारतीय साहित्य संस्कृति का काव्य संवाद यात्रा कार्यक्रम संपन्न,
जीना नहीं जिंदा रहना है-सुधीर*
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साहित्यिक सामाजिक संस्था ‘भारतीय साहित्य संस्कृति’ का ‘काव्य संवाद यात्रा’ आनलाइन कार्यक्रम दिनांक 02.08.2021 को सफलता पूर्वक संपन्न हुआ। सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त एवं कई एनजीओ से जुड़ी भारतीय साहित्य संस्कृति एक सम्मानित संस्था है। एक ऐसी संस्था जिसका मुख्य उद्देश्य मानव कल्याण, जनजीवन कल्याण, पशुसेवा, रक्तदान, नेत्रदान तथा समाज के कल्याण के लिए प्रयत्नशील रहकर जनमानस में जागरूकता को विकसित करना और संवेदना जगाना है। भारतीय साहित्य संस्कृति भारतीय साहित्य के साथ- साथ भारतीय संस्कृति के उत्थान के लिए सदैव कार्यरत रहता है। यह मंच साहित्य, कला एवं समाज सेवा में समर्पित लोगों को एक नई पहचान देने और उनके उत्कृष्ट कार्यों को प्रकाश में लाने का भरपूर प्रयास करता है।
भारतीय साहित्य संस्कृति एक साक्षात्कार कार्यक्रम ,काव्य संवाद यात्रा कार्यक्रम का आयोजन करता है । जिसमें समाज की विभिन्न सेवा से जुड़े लोग, उत्कृष्ट साहित्यकार, कला,शिक्षा ,संस्कृति तथा जनकल्याण के लिए अनुकरणीय कार्य करने वाले अतिथियों को आमंत्रित किया जाता है, और संवाद के द्वारा लोगों में मानवता की भावना को जागरूक और प्रेरित करने का प्रयास किया जाता है। आमंत्रित अतिथियों से उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं, उनके व्यक्तित्व और समाज के लिए उनके प्रेरक पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की इसी कड़ी में भारतीय साहित्य संस्कृति के मंच पर इस बार अतिथि के रुप में पक्षाघात से जूझकर बाहर निकलकर आये गोण्डा (उ.प्र.) वरिष्ठ कवि/साहित्यकार और बहुतों के प्रेरणास्रोत, मार्गदर्शक आ. सुधीर श्रीवास्तव जी को आमंत्रित किया गया।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी आ. सुधीर जी अनेकों साहित्यिक संस्थाओं ,मंचों के जिम्मेदार पदाधिकारी हैं और अन्य मंचों को भी सहयोग, मार्गदर्शन देते रहते हैं।श्री श्रीवास्तव ने लोगों के साथ अपनी जन्म से लेकर अब तक की जीवन यात्रा को काव्यात्मक रुप में भी साझा किया एवं अपनी स्पष्टवादिता/ वाकपटुता से श्रोताओं को बहुत प्रोत्साहित कर अपनी छाप छोड़ा। जीवन की अनेकानेक झंझावातों के बीच पिछले वर्ष पक्षाघात के उपचार के मध्य पिछले 20-22 वर्षों से कोमा में जा चुकी लेखनी को पुनर्जीवित करने में भी सफल हुए और फिर पीछे नहीं देखा और आज हर दिन के साथ उनके मान सम्मान का दायरा उनकी खुद की उम्मीदों से बहुत आगे जा रहा।इसके लिए वे ईश्वर का धन्यवाद देते हुए कहते है कि ईश्वर की हर व्यवस्था, निर्णय हमारे लिए उचित होती है,बस हम समझ नहीं पाते और किस्मत को दोष देते हैं।
उन्होंने स्वयं का उदाहरण देते हुए कहा पक्षाघात के कारण बढ़ती आर्थिक, शारीरिक चिंता से निराशा के बादल एक बार लेखन यात्रा पुनः शुरु होने के साथ गौण हो गयी।
कार्यक्रम की मंच संचालिका आ.आराधना प्रियदर्शिनी के एक सवाल के जवाब में उन्होंने लोगों से अपील की कि जिससे जो भी बन पड़े,वह उसी दिशा में किसी व्यक्ति अथवा समाज, राष्ट्र और संसार के लिए निःस्वार्थ भाव से सेवा/सहयोग करे, ये हम सब की नैतिक/मानवीय जिम्मेदारी भी है । उन्होंने यह भी कहा कि वे स्वयं नेत्रदान का संकल्प और देहदान के प्रति संकल्पित हैं।। उन्होंने यह भी कहा कि उनका उद्देश्य जीना नहीं जिंदा रहना है और कुछ ऐसा करना है कि हम इस दुनियां से जाकर भी किसी के काम आ सकें, लोगों के बीच जिंदा रह सकेंं।
चलते चलते उन्होंने मंच के क्रियाकलापों की सराहना और निरंतर सहयोग के आश्वासन के अलावा संस्था की सह संस्थापिका आ.आराधना प्रियदर्शिनी के पशु प्रेम को लोगों के लिए नजीर कहा और प्रेरणा लेने के साथ सहयोग की अपील भी की।
संस्था के संस्थापक आ.कौशल किशोर जी एवं सह संस्थापिका आ.आराधना प्रियदर्शनी जी ने भी श्रोताओं का मनोबल खूब बढ़ाया,साथ ही श्री श्रीवास्तव को मंच के साथ साथ स्वयं के लिए भी अभिभावक तुल्य , मार्गदर्शक, प्रेरक बताते हुए प्रसन्नता व्यक्त की।
संस्था द्वारा आज के अतिथि रहे आ.सुधीर श्रीवास्तव जी को सम्मान पत्र देकर सम्मानित भी किया गया।
देश विदेश से अनेक साहित्यिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विभूतियों से प्राप्त शुभकामनाओं से पूरा पटल/कार्यक्रम सुशोभित व सुरभित रहा। अपनी शानदार कामयाबी से उत्साहित अब भारतीय साहित्य संस्कृति अपने अगले चरण की तैयारियों की ओर अग्रसर हो रहा है।

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