प्रथम रश्मि

दिनांक – ०२/०८/२०२१
विधा – – कविता
शीर्षक- “प्रथम रश्मि”

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उठो! सवेरा तुम्हें बुलाता,
दुस्वप्नों की रात गयी।
प्रथम रश्मि चहुँ ओर सजी है,
कुटिल तिमिर की बात गयी।

रात्रि थी वह अति भयावह,
अंधकार था खाये जाता।
सरगम का हर तार हिला था,
बेसुर गीत था गाये जाता।
छँटीं सभी घनघोर घटायें,
प्रलयभरी बरसात गयी।

नव-रश्मि है, नव-आभा है,
नवल सोच हम ह्रदय जगा लें।
नयी सुबह शुरुआत नयी हो,
सुखद भविष्य के स्वप्न सजा लें।
कष्टभरी कोई याद नहीं अब,
सब रजनी के साथ गयीं।

अंतर्तम झकझोर के रख दे,
अनुभव कल तक बहुत बुरे थे।
ढेरों गम थे, तन्हा हम थे,
अपनों से ही नहीं खुले थे।
प्रथम रश्मि संदेश सुनाती,
नव-जीवन शुरुआत हुई।

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लोकेन्द्र कुम्भकार
शाजापुर (मध्यप्रदेश)।

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