आई थी गृहलक्ष्मी बनकर , बन गई दुर्गा
*आई थी गृहलक्ष्मी बनकर , बन गई दुर्गा*
राकेश कुमार अग्रवाल
महाराष्ट्र के नागपुर से आई एक खबर ने हर किसी को हैरत में डाल दिया है . खबर के मुताबिक 80 वर्षीय वृद्ध माता पिता ने ही अपने 62 वर्षीय बेटे को वृद्धाश्रम भेज दिया है . बेटे को वृद्धाश्रम भेजने का कारण बहू द्वारा आए दिन बेटे को प्रताडित करना और मारना है . बहू द्वारा पति की जमकर की गई पिटाई के बाद वृद्ध दंपति के बेटे की तबियत खराब हो गई . बहू बेटे से अलग रह रहे वृद्ध दंपति को जब इसकी सूचना मिली तो उन्होंने बेटे को वृद्धाश्रम में रखने का निर्णय लिया . 62 वर्षीय बुजुर्ग सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त हैं . बहू हर महीने बेटे की पेंशन छीन लेती है . सास ससुर तो बहू को फूटी आँख भी नहीं भाते हैं . यहां तक कि बहू के बेटे भी अपनी मां के कहने पर कई बार अपने ही पिता पर हाथ उठा चुके हैं . बेटा अपने माता पिता से मिलना तो दूर फोन पर भी वृद्ध माता – पिता और बहन से बात नहीं कर सकता . इसका पता चलते ही बहू हंगामा खडा कर देती है .
पति द्वारा पत्नी की पिटाई भारतीय समाज का ऐसा काला स्याह सच है जो अधिकांश घरों में बंद दरवाजों में अकसर घटित होता है . बहू को प्रताडित करने में अकसर सास , ससुर , देवर , जेठ , ननद एवं स्वयं पति भी बहू के साथ होने वाली घरेलू हिंसा में शामिल होता रहा है . या उन पर मार पिटाई के आरोप लगते रहे हैं . छोटे कस्बों व गाँवों में बहू पर हाथ उठाना उसे शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताडित करना अभी भी रोजमर्रा का किस्सा माना जाता है . जिसे घर की चारदीवारी के अंदर अकसर बहू अपनी किस्मत मान सहती आई है . कभी घर वालों की इज्जत के नाम पर तो कभी माता पिता की लाज की खातिर . घर में होने वाली हिंसा की रोकथाम के लिए घरेलू हिंसा महिला अधिनियम 2005 लाया गया था . जिसका मकसद महिला को घर परिवार व रिश्तेदारों के दुर्व्यवहार से संरक्षित करना है .
तीन – चार दशक पूर्व दहेज के नाम पर नवविवाहिताओं की मौतों की बाढ आ गई थी . स्टोव फटने से बहुओं की मौतों ने समाज ही नहीं संसद को हिला दिया था . तब सरकार को कानून बनाना पडा था . हालांकि दहेज अधिनियम का दुरुपयोग भी जमकर हुआ था . विवाहिता की ससुराल में मौत पर घर के सभी सदस्यों को लपेट लिया जाता था . जिसमें वृद्धों से लेकर छोटे बच्चों को भी नहीं बख्शा जाता था . उस दौर में लडकी के दिमाग में ससुराल का खौफ होता था . मांए भी अपनी अविवाहित बेटियों को काम सिखाने व उनसे घरेलू काम कराने के लिए यह कहकर ससुराल का भौकाल दिखाती थीं कि जब सास के घर जाएगी तब तेरी अकल ठिकाने आएगी .
लेकिन तीन चार दशकों में समाज में तेजी से बदलाव आए हैं . संयुक्त परिवारों का विघटन होना , नौकरी को सर्वोच्च वरीयता देना एवं शादी के लिए नौकरी शुदा लडकों को वरीयता मिलने के बाद घर परिवारों में तेजी से बहुत कुछ बदल गया . वो लडकी जो संयुक्त परिवार की बहू बनकर आती थी वहां दब्बू बनकर रह जाती थी उसका अस्तित्व भी ससुराल में गुम हो जाता था . लेकिन एकल परिवारों के चलन व नौकरी – रोजगार के वास्ते गांव घर छोडकर बाहर जाने के कारण वही दब्बू लडकी धीरे धीरे मुखर होना शुरु हो गई . तमाम परिवारों में ऐसा देखने में आ रहा है कि लडका और बहू दोनों की भूमिका बिल्कुल उल्टी हो गई है . हावी रहने वाला लडका दब्बू हो गया जबकि डरी सहमी रहने वाली आज्ञाकारी बहू चंडी के अवतार में आ गई . उसने थाना , तहसील व मीडिया का रास्ता भी देख लिया है . हालात इतने बदल रहे हैं कि कुछ एक घरों में देखने में आ रहा है कि सब कुछ सह जाने व उसे अपनी किस्मत का हिस्सा मानने वाली बहू अब हमलावर मुद्रा में है . वह पति , सास ,ससुर किसी से भी भिड जाती है . वह पलटवार भी करती है एवं उनसेे लड जाती है , हाथा पाई पर उतारू हो जाती है . रोना , बिसूरना व घुट घुटकर सहने का दौर खत्म होता जा रहा है . अब पति के साथ अलग से रह रही पत्नी हो या ससुराल में सास ससुर के साथ रह रही बहू हो बरदाश्त करने के बजाए अब भिडने लगी है . अब उसे ससुराल की चौखट छोडने से कोई गुरेज नहीं रहा है . वह ससुराल छोडकर आ जाती है साथ ही उन पर मुकदमा भी दर्ज करा देती है . पारिवारिक अदालतों में तो पति – पत्नी के आपसी विवादों के मुकदमों में अप्रत्याशित वृद्धि दर्शा रही है कि घरों के अंदर सब कुछ ठीक नहीं है . बाहर से मुस्कराहट बिखेरने वाले दंपति अंदर से गुस्से में है . और यह गुस्सा हिंसक होता जा रहा है .
देश में तमाम पत्नी पीडित पतियों द्वारा मोर्चा और मंच पहले ही बन चुके हैं . जो अकसर हास्य का विषय बन जाते हैं लेकिन जानने , समझने व चिंतन का वक्त जरूर आ गया है कि आखिरकार सात जन्मों का व जन्म जन्मांतर का दाम्पत्य बंधन दरकने क्यों लगा है . रिश्ते में गांठ क्यों पड रही है . इससे तो न केवल परिवार बिखरेंगे बल्कि पति पत्नी के बीच की लडाई के दुष्परिणाम बच्चों को भुगतने पडेंगे . साथ ही बची खुची ऊर्जा एक दूसरे का सहयोगी बनने के बजाए एक दूसरे से निपटने के लिए कोर्ट कचहरी व पुलिस को मैनेज करने में बीतेगी .