मत्तगयंद सवैया
मत्तगयंद सवैया
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भगण ×7+2गुरु, 12-11
वर्ण पर यति चार चरण
समतुकान्त।
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211 211 211 211
211 211 211 22
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1-
झूम रहा मन झूम रहा तन,
गूँज रही मुरली मन मेरे।
देख रहे हम टाल रहे गम,
मोह भरे मुरली तन मेरे।।
शीत हवा बहती सुखदायक,
तेज बहे सरिता जल घेरे।
वेग दवा प्रगटी तन पालक,
ठीक हुए प्रभु जी जन तेरे।।
2-
ठोकर खाकर बैठ गए हम।
शीतल पीकर के जल प्यारा।।
पीपल छाँव बड़ी मनभावन,
पाकर सोच रहा मन न्यारा।।
हार गया कब ऐ मन चंचल,
ज्ञात नहीं रण छोड़ कहाया।
आन मिलो अब हे शिव शंकर,
आज नहीं वन मोर नचाया।।
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प्रभुपग धूल
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश