शीर्षक -काया का महत्व
शीर्षक -काया का महत्व
एक दिन मानव देह देख मैं बहुत इठलाई,
इस सुंदर काया का वर्चस्व देख मन ही मन मुस्कुराई।
पर कुछ क्षण में ही बुढ़ापा नजर आया सोचकर धूमिल काया को दिल बड़ा घबराया ।
व्यथित हुआ जब ह्रदय मेरा तब अंतर्मन से यही आवाज आई
प्रभु कृपा से तूने करोड़ों की संपत्ति पाई।
फिर भी मानव देह का शोषण तुमने
कर डाला न व्यायाम न शुद्ध आहार
न कुछ पल मेरे साथ बिताया ।
जीवन की आपाधापी में बच्चों की सुख-सुविधा में तूने मुझे भुलाया समय-समय पर मेरा चेकअप भी तो न करवाया
बीती जब सांझ ,हर अंग शिथिल हो आया
तब तुझे मेरे अस्तित्व का खतरा नजर आया।
बेटे बहू के ऊपर जब सेवा का भार आया तब हे! मूर्ख मानव तुझे अपनी काया का महत्व समझ आया।
रैन बीती सुबह हुई पर अब मैं ना उठ पाऊंगी ।
तू न जागा कहते कहते पर अब मैं भी विश्राम सैया पर जाऊंगी।
जाते-जाते यही पैगाम सुनाउगी
रखो खयाल मानव तन का यही है सच्चा साथी ।
इसका मिले साथ तो हरअवस्था में मिलेगा सुख अपार जीवन में
सदा भरे रहेंगे सुखसमृद्धि के सागर अपार।
स्वरचित-डॉ मनीषा दुबे