मेघ कब छाएँ नभ में आन। श्याम कब गाएँ सुख के गान।।

श्रृंगार छंद
16 मात्रा मापनी मुक्त मात्रिक आदि
त्रिकल+द्विकल अंत 21
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1-
मेघ कब छाएँ नभ में आन।
श्याम कब गाएँ सुख के गान।।
सोच में श्यामा सुनिए श्याम।
भूमि है सूखी गुनिए श्याम।।
2-
मोर कब नाचे वन में नाच।
सूख ती धरती रवि की आँच।।
टूट ता तन ज्यों टूटे काँच।
श्याम हैं तन में तुम लो जाँच।।
3-
शीश पे सेंदुर भरके लाल।
श्याम सँग झूलें झूला डाल।।
कान में वाली गर्दन माल।
शान से श्यामा चलतीं चाल।।
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प्रभुपग धूल
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश

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