अरे कहीं देखा है तुमने
शीर्षक :- अरे कहीं देखा है तुमने
अरे कहीं देखा है तुमने
मुझे प्यार करने वाले को?
मेरी आँखों मे आकर फिर
आंसू बन ढरने वाले को
अरे कहीं देखा है तुमने
मुझे प्रेम मे जलते हुए?
और फिर छोड़ तन्हा
बाद हाँथ मलते हुए
अरे कहीं देखा है तुमने
मुझे खुद मे उलझे हुए?
और फिर निःशब्द सा
बात हो सुलझे हुए
अरे कहीं देखा है तुमने
खुद मे ही खोया हुआ?
कभी एकटक निहारता
कभी कभी सोया हुआ
अरे कहीं देखा है तुमने
क्यूँ शांत सा व्याकुल है मन?
कर रहा हूँ व्यर्थ ही
अपने ही भविष्य का चिंतन
और अगर तुमने ये सब देखा ये सब जाना
तो जरा ये तो बताओ क्या होता है मोहब्बत का पैमाना?
क्या मोहब्बत मे होता है टूट कर बिखर जाना?
या कि होता है फ़ानूस बन के निखर जाना
जिस दिन इन सवालों का जवाब मिले बता देना
और जो अश्क़ गालों पर गिर रहे हैं उन्हें धीरे से छिपा लेना
आपका मुकेश लखनवी