विरह बना विच्छेद

*विरह बना विच्छेद*

प्रीत पुरानी मीत पराया
एकल अतीत ने गले लगाया
टूटे बंधन अग्नि-फेरों के
छूटा अब संगी का साया

ना दोष तेरा ना दोष मेरा
ये अमिट भाग्य का लेखा है
ना प्रेम तुम्हें ना मोह मुझे
जीवन पथ की नई रेखा है

आँचल में छिपी मासूम से पर
क्या उत्तर दूँ मूक प्रश्नों पर
मन टूटा है तू झूठा है
तेरा लोभ था हावी रिश्तों पर

जाओ अब मिलन की आस नहीं
प्रेम का अब अहसास नहीं
इस विरह को बना विच्छेद दिया
इसने अपनों को भेद दिया
पा लिया जीवन अर्थ सकल
अब सपनों से मुँह फ़ेर लिया
अब सपनों से मुँह फ़ेर लिया ….

रचनाकार : अनिता तेजवानी (अनु प्रांजल )

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